‘पार्लियामेंट पर हमला शर्मिदगी की बात नहीं’

श्रीनगर, 27 फरवरी: पार्लियामेंट हमले के गुनाहगार अफजल गुरू ने चार साल पहले लिखे एक खत में कहा था कि पार्लियामेंट पर 13 दिसंबर को हुए हमले को लेकर हमें शर्मिदा होनी की जरूरत नहीं है। लेकिन उसने वाजेह तौर पर इसकी जिम्मेदारी नहीं ली।

दिल्ली के तिहाड़ जेल में 9 फरवरी को फांसी पर लटकाए गए अफजल गुरू ने एक मुकामी हफ्तावार उर्दू अखबार को लिखे खत में हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाउद्दीन से खिताब करते हुए कहा था कि 13 दिसंबर के वाकिया के लिए हमें शर्मिदा होने की जरूरत नहीं है और साथ उसने इस हमले को साजिश कहने पर भी ऐतराज़ जताया था |

अखबार के संपादक शबनम कयूम ने कहा कि चार साल पहले उन्हें गुरू का यह खत और डाक्यूमेंट ( Document) मिला था और वह इस बात से पूरी तरह से मुतमीन हैं कि यह खत उसी के तरफ से लिखा गया है। मुझे इसकी परवाह नहीं है कि लोग इसे सच मानें या न मानें। जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने इस खत को आज शाय करने के बजाय पहले क्यों नहीं किया, तो उन्होंने कहा कि वह उस वक्त ऐसा करना मुनासिब नहीं समझते थे। मुझे लगता था कि वह जज़्बात में बह गया था।

वह मामले में शामिल नहीं था, लेकिन उसे लगता कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है, तो क्यों न इस इल्जाम को कुबूल कर अपनी शहादत दे दें। मुझे उस वक्त ऐसा नहीं लगा कि खत को शाय करने का सही वक्त है। उस वक्त यह उसके खिलाफ सुबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता था, लेकिन अब वह नहीं है तो इसके इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है।

अफजल ने खत में लिखा है, मैं सलाउद्दीन से गुज़ारिश करता हूं कि वह 13 दिसंबर के हमले को साजिश न कहें। इससे मेरे दिल में दर्द होता है। हमला कश्मीर मुद्दे से मुताल्लिक था। अगर हमला एक साजिश था तो पूरा जद्द् ओ जहद एक साजिश है। हमें 13 दिसंबर के वाकिया से शर्मिदा नहीं होना चाहिए। उसने लिखा था कि जब तक कश्मीर मुद्दा अनसुलझा रहेगा, भारत में कशीदाअ हालात बनी रहेगी।

वज़ीर ए आज़म को लिखे खत के कुछ अल्फाज़

प्रिय डॉ. मनमोहन सिंह जी,

कश्मीर और बाकी मुल्क के बीच मजबूत ताल्लुकात बनाने की कोशिशो पर पानी फेर देने वाली वाकिया के बाद आपको यह खत लिख रहा हूं। अफजल गुरु को जिस तरीके से फांसी दी गई, उसके बाद आम कश्मीरियों में गुस्सा है। आवाम में, ऐसा जुस्सा मैंने 50 साल के सयासी ज़िंदगी में कभी नहीं देखा। इस वाकिया के बाद आम कश्मीरी इंडियन यूनियन में अपनी हालात को लेकर नये सिरे से सोचेगा।

मैं शुरू से ही गुरु की सजा-ए-मौत को उम्र कैद में बदलने पर जोर दे रहा था। लेकिन आपकी हुकूमत ऐसे हस्सास मुद्दों पर तभी राय लेती है, जब हालात बेकाबू हो जाते हैं। कश्मीरी अवाम के जज़्बातों की गफलत से उनमें यह ख्याल मजबूत हुई है कि उनकेसाथ इम्तियाज़ी सुलूक पर मबनी सुलूक किया जाता है। नाश को वापस कर देने से न सिर्फ अफजल के खानदान वालो का दर्द कुछ कम होगा, बल्कि कश्मीर और बाकी मुल्क के बीच पैदा हुई दूरी कम करने का एक रास्ता भी खुलेगा।
‍‍‍ ‍‍ बशुक्रिया: जागरण