एक बार फिर पार्लियामेंट में हंगामा! दोनों ऐवानों में फिर वही शोरगुल और काबू से बाहर होते हमारे अरकाने पार्लियामेंट।
पिछले तीन दिन से पार्लियामेंट में जो नजारा दिख रहा है वह सवाल खड़े करता है कि क्या सचमुच मुल्क के लिए जरूरी काम निपटाने में हमारे अरकाने पार्लियामेंट की दिलचस्पी है? आखिर क्यों हमारे एम पी पार्लियामेंट का कीमती वक्त हंगामे की नज़र चढ़ा देते हैं? क्या बिना हंगामे के कोई बहस पूरी नहीं हो सकती? गौर करने वाली बात ये कि पार्लियामेंट की कार्यवाही टीवी पर दिखाई जाती है, जिसे पूरा देश देखता है।
सबसे पहले गौर करें. पिछले दो साल के दौरान पार्लियामेंट की कार्यवाही दौरान हंगामे पहले भी होते रहे हैं, लेकिन पिछले दो साल से जिस कदर पार्लियामेंट अखाड़ा बन गई है उसकी मिसाल नहीं मिलती। हर बड़े मौज़ु पर पार्लियामेंट में हंगामा रोजाना की बात हो गई है। हमारे एम पी अहम मौज़ुआत पर तो हंगामे पर उतर आते हैं, लेकिन लोकपाल जैसे अहम मौज़ु पर उनकी एकराय कभी नहीं होती। इसे इस मुल्क के अवाम क्या समझे?
पिछला पूरा सेशन ही हंगामे की नज़र चढ़ गया। हर बडी जमात ने जब भी मौका मिला किसी खास मौज़ु पर पार्लियामेंट को एक तरह से महरूस ही बना लिया। खास बात ये कि अपोज़िशन में एनडीए के रहते 14वीं और 15वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा हंगामा हुआ है।