पार्लियामेंट हमला केस हुकूमत अफ़ज़ल गुरु के ख़ानदान से माज़रत करे

प्रो. एस ए आर गिलानी ने कहा कि हकूमत-ए-हिन्द को चाहीए कि वो फ़ौरी तौर पर मुल्क से बिलख़सूस कश्मीरी अवाम और अफ़ज़ल गुरु के ख़ानदान से माज़रत ख़्वाही करे।

प्रो. एस ए आर गिलानी ने पार्लियामेंट पर हुए हमले में एक मुल्ज़िम रह चुके हैं, ने वज़ारत-ए-दाख़िला के एक आला ओहदेदार की तरफ से किए गए इन्किशाफ़ के बाद ये रद्द-ए-अमल ज़ाहिर किया। बताया कि इब्तिदा से ही वो ये कह रहे हैंके पार्लियामेंट पर हमले के मुआमले में कई उलझनें पाई जाती हैं जिस का अहम सबूत उस वक़्त जो लोग पार्लियामेंट हमले के दौरान मारे गए उनकी शनाख़्त ना होना है।

प्रो. एस ए आर गिलानी ने पार्लीमैंट हमले वाक़िये के बाद के हालात की याद ताज़ा करते हुए कहा कि उस वक़्त के वज़ीर-ए-दाख़िला लाल कृष्ण अडवानी ने ये कहा था कि जो लोग मारे गए हैं उनकी सूरत-ओ-शक्ल से एसा लगता है के वो पाकिस्तानी हैं।

उन्होंने बताया कि बगै़र किसी सबूत और ठोस शवाहिद के बगै़र ये मुक़द्दमा चलाया गया और इस मुक़द्दमे में एक बेक़सूर को ना सिर्फ़ फांसी की सज़ा सुनाई गई बल्कि इस बेक़सूर को तख़्तादार पर भी चढ़ा दिया गया। आया अब हुकूमत किया अफ़ज़ल गुरु को वापिस लासकती है जबकि ये इन्किशाफ़ होचुका हैके मुल्क के सब से बड़े जमहूरी इदारे पर हुआ हमला सरकारी दहश्तगर्दी का नतीजा था।

प्रो. एस ए आर गिलानी ने इस इन्किशाफ़ के बाद सयासी जमातों की ख़ामोशी पर तास्सुफ़ का इज़हार किया और कहा कि जमहूरियत के मानी ही सवाल करना है लेकिन पार्लियामेंट हमले के मुताल्लिक़ संगीन इन्किशाफ़ के बावजूद कोई जमात सवाल नहीं उठा रही है।

स्टाफ़ रिपोर्टर सियासत से ख़ुसूसी गुफ़्तगु के दौरान प्रो. एस ए आर गिलानी ने इन ख़्यालात का इज़हार किया। उन्होंने बताया कि जमहूरीयत का जौहर ही ये है के जमहूरियत में सवाल करने की आज़ादी होती है लेकिन हिन्दुस्तान में एसा नहीं होरहा है जो कि जमहूरियत के लिए नुक़्सानदेह है। इस इन्किशाफ़ के बाद हुकूमत बल्कि सारे मुल्क को हल जाना चाहीए था लेकिन एसा कुछ नहीं हुआ जिस से एसा महसूस होता हैके इस मुजरिमाना कारकर्दगी में सयासी जमातें अपने मुफ़ादात के पेशे नज़र ख़ामोशी इख़तियार कर चुके हैं।

प्रो. गिलानी ने कहा कि हकूमत-ए-हिन्द को अफ़ज़ल गुरु की फांसी के बाद शर्मिंदा होना चाहीए था लेकिन हकूमत-ए-हिन्द ने एसा ना करके कश्मीरी नौजवानों के क़तल को जायज़ क़रार देने की कोशिश की है। जब मोदी दिल्ली से क़रीब होरहे थे तो बरसर-ए-इक़तिदार जमात ने अफ़ज़ल गुरु को फांसी दे कर ज़ाफ़रानी ताक़तों की तरफ बंदी की कोशिश की थी और अब चुनाव क़रीब हैं तो वो हक़ायक़ मंज़रे आम पर लाए जा रहे हैं जो पहले सिविल सोसाइटी ने अवाम बल्कि हुकूमतों को पेश किए हैं।

उन्होंने बताया कि पार्लीमैंट हमला मुक़द्दमे में खोखले सबूत और ख़बासत भरे ज़हनों से बेगुनाह इंसान को फांसी दिलवाई गई। उन्होंने बताया कि जब वो पार्लियामेंट हमला मुक़द्दमे में माख़ूज़ किए गए वो मुतालिबा कररहे हैं के वाक़िये की ग़ैर जानिबदाराना तहक़ीक़ात करवाई जाएं ताके हक़ीक़ी ख़ातियों को सज़ा होसके।

उन्होंने कहा कि रिहाई के बाद उन्होंने बारहा पार्लियामेंट हमला वाक़िये पर वाईट पेपर की इजराई का मुतालिबा किया लेकिन हुकूमत ने उसको नजरअंदाज़ कर दिया। पार्लियामेंट पर हुकूमत की ईमा हमले के इन्किशाफ़ के बाद इस बात का अंदाज़ा किया जा सकता हैके कितने ख़बीस ज़हन उस कारबद के पीछे कार फ़रमां रहे हैं। प्रोफ़ैसर गिलानी ने हुकूमत से मुतालिबा किया कि वो इस वाक़िये की तमाम तफ़सीलात मंज़रे आम पर लाए ताके हक़ायक़ अवाम को मालूम होसके। इस तरह के वाक़ियात की पर्दापोशी मुल्क की सालमीयत के लिए ख़तरा साबित होसकती है। गिलानी ने सयासी जमातों को मश्वरा दिया कि वो इस वाक़िये पर हुकूमत से सवाल करें ताके जमहूरी तक़ाज़ों को पूरा किया जा सके।