पार्लीमैंट के तक़द्दुस(एहतीराम) और बाला-ए-दस्ती (एहमियत)को बरक़रार(बाकि) रखना ज़रूरी

* कार्रवाई के बार बार इल्तीवा(रोक देने) पर तशवीश(चिंता),ख़ुसूसी(खास) मेकानिज्म की ज़रूरत , सिवील सोसाइटी तन्क़ीद(आलोचना) का निशाना , पार्लीमेंट के 60 साल की तकमील(पुरा होने) पर ख़ुसूसी इज्लास(खास सभा)
नई दिल्ली। पार्लीमेंट की कारकर्दगी की इफ़ादीयत पर सवालात उठने वाले वाक़ियात और एवान(संसद) की कार्यवाईयों में मुतवातिर ख़ललअंदाज़ी(लगातार गड बड करने) पर तशवीश(चींता) ज़ाहिर करते हुए क़ाइदीन ने पार्लीमेंट के तक़द्दुस और वक़ार(एहतीराम ओर एहमीयत) को बहाल करने(लागू करने) के लिए संजीदा ख़ुद एहतिसाबी पर ज़ोर दिया( ।

पार्लीमेंट की आज 60 वीं सालगिरा मनाई गई । इस मौके पर आज़ाद हिंदूस्तान में पहला इज्लास(सभा) मुनाक़िद किया गया । पार्टी ख़ुतूत(उसूलों) से बालातर होकर(को एक तरफ छोड कर) क़ाइदीन ने ज़ोर दे कर कहा कि पार्लीमेंट की बालादस्ती(एहमीयत) को बरक़रार(बाकी) रखना ज़रूरी है ।

पार्लीमेंट ही क़वानीन वज़ा करता(बनाता) है अवाम नहीं । बज़ाहिर(जाहिर में) पार्लीमेंट्री के ख़िलाफ़ सिवील सोसायटी की मुहिम का हवाला देते हुए क़ाइदीन ने पार्लीमेंट के तक़द्दुस(एहतीराम) और बालादस्ती(एहमीयत) को बरक़रार(बाकी) रखने पर ज़ोर दिया ।

लोक पाल बिल के लिए पार्लीमेंट पर दबाउ डालने सिवील सोसायटी की मुहिम पर नाराज़गी ज़ाहिर की गई । दोनों एवान(संसदों) के एक रोज़ा तवील इज्लास(लंबी सभा) के इख़तेताम(पुरा होने) पर मुत्तफ़िक़ा तौर पर(सब ने मील कर) क़रारदादें मंज़ूर की और कहा गया कि पार्लीमेंट की बालादस्ती(एहमियत) , वक़ार और तक़द्दुस(एहतीराम) को बरक़रार(बाकी) रखना ज़रूरी है ।

इस इदारे को तब्दीली का मूअस्सीर(बदलाव पैदा करने का असरदायक) हथियार भी बनाना चाहिये । जब्कि जुम्हूरी अक़दार और उसूलों को भी मुस्तहकम(मज्बूत) किया जाये । तमाम क़ाइदीन ने इस बात पर फ़ख़र का इज़हार(जाहिर) किया कि हिंदूस्तान ने जुम्हूरीयत की बुनियादें मुस्तहकम(मज्बूत) बनाई और सारी दुनिया के लिए ये दमकती हुई मिसाल बन चुका है हालाँकि उसे संगीन (बहुत ज्यादा)ग़ुर्बत, दहश्तगर्दी और पड़ोसी मुल्क में जुम्हूरीयत के साथ जारी नशेब-ओ-फ़राज़ (उंच निच)का साम्ना है।

आज के इस ख़ुसूसी(खास) सैशन में 1970 के दहे की मुख़्तसर मुद्दत के लिए नाफ़िज़ इमरजंसी का भी तज़किरा(जीकर) हुआ जिसे दस्तूरी तौर पर फ़ौरी दरुस्त कर दिया गया था। वज़ीर-ए-आज़म (वडा प्रधान)मनमोहन सिंह ने मुहासिबा(अप्ने आप में झांकने) की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि राज्य सभा में बार बार कार्रवाई के इल्तीवा(रोक देने) और मुबाहिस(बहसों) के लिए अरकान(सदस्यों) की अदम आमादगी(के रजामंद ना होने) पर तशवीश(चींता) ज़ाहिर की।

उन्हों ने बहस शुरू करते हुए तमाम अरकान(सदस्यों) से अपील की कि वो एक नए बाब का आग़ाज़(कि शूरुआत) करें और एवान(संसद) से जो तवक़्क़ुआत वाबस्ता(उम्मीदें लगी हुइ) हैं, उसे बावक़ार अंदाज़ में पूरा किया जाए। वज़ीर फैनान्स और लोक सभा क़ाइद परनब मुकर्जी ने भी एवान-ए-ज़ेरीं(संसद) के बार बार इल्तीवा(कारवाइ के रोक देने) पर तशवीश(चींता) ज़ाहिर की।

उन्हों ने कहा कि चंद अरकान(सदस्य) अपने एहतिजाज के ज़रीये अक्सरीयत को ख़ामोश कर रहे हैं। उन्हों ने इस तरह की ख़ललअंदाज़ी(गड बड) को ख़त्म‌ करने के लिए मेकानिज्म की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

सदर नशीन यू पी ए सोनीया गांधी ने पार्लीमेंट की आज़ादी के बहरसूरत तहफ़्फ़ुज़(हर हालत में हिफाजत) पर ज़ोर दिया। उन्हों ने अरकान(सदस्यों) से ख़ाहिश की कि दस्तूर साज़ों(कानुन बनाने वालों) के मेयार पर खरे उतरें। उन्हों ने बताया कि पार्लीमेंट का सफ़र हमेशा आसान या बिना चैलेंज के नहीं हुआ करता और 60 साला जश्न भी इस का मज़हर(नमुना) है।

बी जे पी लीडर एल के अडवानी ने परनब मुकर्जी की राय से इत्तिफ़ाक़ करते हुए(सहीह मान्ते हूए) कहा कि एक दूसरे की राय को समझने और रवादारी(मेल जूल) के साथ साथ पार्लीमेंट में बेहस के ज़रीये मसाइल हल किए जा सकते हैं। राज्य सभा में क़ाइद अपोज़ीशन अरूण जेटली ने कहा कि मुल्क को दरपेश(लाहक) सब से बड़ा चैलेंज सयासी मेयार में बेहतरी और अच्छी हुक्मरानी है। जब एक मर्तबा जवाबदेही का तरीका बेहतर होजाए तो फिर पार्लीमेट और पारलीमेंट्री कारकर्दगी के ताल्लुक़(संबध) से जारी ये तशवीश(चिंता) ख़ुदबख़ुद ख़त्म‌ हो जाएगी।

1970 के दहे में इमरजंसी के तजरबों का हवाला देते हुए उन्हों ने कहा कि बुनियादी हुक़ूक़ को ग़ैर मुअत्तल शूदा(खत्म) कर दिया गया था। हम ने अपनी ग़लतीयों से सबक़ सीखा है और हम ने अपने दस्तूर का बुनियादी ढांचा तरमीम(फेर फार) ना होसकने के क़ाबिल बनाया ताकि कोई भी इस में तहरीफ़(फेर फार) ना कर सके।

शरद यादव (जनता दल यू) ने कहा कि जुम्हूरीयत को ग़रीब अवाम(जनता) की दहलीज़(घरों) तक पहुंचना चाहीए। सी पी आई एम लीडर सीता राम यचोरी ने कहा कि हिंदूस्तानी पार्लीमेंट की कारकर्दगी का इन्हिसार पार्लीमेंट्री कार्यवाईयों पर होता है चुनांचे उन्हों ने एक साल में कम अज़ कम 100 इज्लास(मिटींगों) को लाज़िमी(जरुरी) बनाने के लिए दस्तूरी तरमीम(कानुन मे फेरफार) का मुतालिबा किया।

उन्हों ने इस बात पर अफ़सोस ज़ाहिर किया कि गुज़श्ता(पीछ्ले) दो दहों में पार्लीमेंट का इज्लास कभी भी एक साल में 100 से ज़ाइद मुनाक़िद नहीं हुआ जबकि बर्तानवी पार्लीमेंट का इज्लास साल में कम अज़ कम 160 दिन के लिए हुआ करता है।

आर जे डी सरबराह लालू प्रसाद यादव ने क़ौमी जमातों(पार्टीयों) को पयाम देते हुए दावा किया कि आइन्दा(अगले) सदारती इंतेख़ाबात (राष्टपती चूनाव) और लोक सभा इंतेख़ाबात(चुनाव) में अलाक़ाई जमातों(स्थानिय पार्टीयों) का कलीदी(अहम) रोल होगा। उन्हों ने कहा कि दिल्ली से लेकर कोलकत्ता तक अलाक़ाई जमातों का बोल बाला है।