नई दिल्ली|इशरत जहां केस में अपने बयान से एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा करने वाले पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लै की 2013 में राय कुछ और थी। हाल ही में टाइम्स नाउ को दिए इंटरव्यू में जीके पिल्लै ने कहा था कि इशरत जहां के लश्कर-ए-तैयबा आतंकी होने की बात राजनीतिक दबाव में हटाई गई थी। पिल्लै ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में इस केस संबंधित दूसरे हलफनामे को बदला गया था और उससे यह जिक्र हटाया गया था कि वह लश्कर से जुड़ी थी।
लेकिन यूपीए के सत्ता में रहने के दौरान वर्ष 2013 में उनकी राय इसके पूरी तरह उलट थी। उस वक्त पिल्लै ने कहा था कि इशरत जहां को ‘संदेह का लाभ’ दिया जाना चाहिए क्योंकि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है, जिससे किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। 2013 में दिया गया उनका यह बयान शुक्रवार को एक विडियो के जरिए लोगों तक पहुंचा है। इस विडियो में पिल्लै यह कहते हुए सुने जा सकते हैं, ‘मैं नहीं मानता कि उसके (इशरत जहां) खिलाफ कोई ठोस सबूत हैं, जिनसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सका। पूरी जांच हुए बिना हमें उसे संदेह का लाभ देना चाहिए। जितना मुझे पता है, एनआईएक की रिपोर्ट में इशरत जहां का नाम नहीं है।’
2013 में दी गई राय के बारे में हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की ओर से पूछे जाने पर पिल्लै ने कहा, ‘मेरी वह टिप्पणी किसी खास परिप्रेक्ष्य में थी। मेरा कहना था कि जब तक पूरी जांच नहीं हो जाती है, तब किसी की इमेज को कैसे खराब किया जा सकता है। मैं अब भी कहता हूं कि इसके बात के पूरे सबूत नहीं थे, जिससे इस बात पर पहुंचा जा सके कि इशरत जहां आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सदस्य थी। लेकिन जावेद के साथ उसका यात्रा करना और कमरा बुक करना संदेह पैदा करता है और इससे लगता है कि कहीं कोई कड़ी टूट रही है।’
हालांकि तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में एक बार फिर दोहराया कि इशरत जहां के लश्कर से कनेक्शन होने के सबूत थे। इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ रहे और एनकाउंटर के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे नारायणन ने हाल ही में लिखा था कि इंटेलिजेंस एजेंसियों को इशरत के लश्कर से जुड़े होने की जानकारी थी। शुक्रवार को उन्होंने कहा था कि इंटेलिंजेस एजेंसियों को ‘काफी ठोस सबूतों’ के आधार पर यह सूचना थी।
पिछले ही दिनों पिल्लै उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने कहा था कि 2009 में गुजरात हाई कोर्ट में इशरत जहां केस से जुड़े दूसरे हलफनामे को राजनीतिक दखल के चलते बदला गया था। उन्होंने दावा किया था कि यह हलफनामा तत्कालीन होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने अधिकारियों की मदद के बिना ही तैयार किया था। 15 जून, 2014 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में इशरत जहां को तीन अन्य लोगों जावेद शेख, अमजद अली राणा और जीशान जौहर समेत मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
source-NBT
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