पुराना शहर में रात दस बजे दुकानात बंद लेकिन नाचने वालियों को सुबह तक नाचने की इजाज़त

( नुमाइंदा ख़ुसूसी ) नीम ब्रहना लड़कियां नाच रही हैं वो मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में अपने जिस्म के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को अजीब-ओ-गरीब अंदाज़ में इस तरह मोड़ रही हैं जैसे ये कोई इंसानी जिस्म नहीं हो बल्कि रबर से बनाया गया कोई मुजस्समा हो । नौजवान मदहोशी में जानवरों जैसी चीख-ओ-पुकार करते हुए इन नाचने वालियोंपर नोट लुटाते जा रहे हैं । करीब में ही उन के बुज़ुर्ग खड़े एसे मुस्कुरा रहे हैं जैसे उन के बच्चे कोईक़ाबिल फ़ख़र कारनामा अंजाम दे रहे होँ । डी जे साउंड सिस्टम की आवाज़ मज़ीद बढ़ाईजा रही है ।

जिस के साथ ही इन नाचने वालियोंके साथ रक़्स में चंद हिजड़े भी शामिल होगए हैं । जश्न का माहौल है कान पड़ी आवाज़ सुनाईनहीं दे रही है । रक़्स जारी है नोटों की बारिश का सिलसिला भी थमता नज़र नहीं आता अचानक करीबी मस्जिद से अज़ान की सदा गूंज रही है । इस के बावजूद ख़ुद को मुस्लमान कहने वाले लो इस जानिब कोई तवज्जा नहीं दे रहे हैं । उन की नज़रें कमर मटकाती नाचने वालियों और मेंढ़क की तरह फुदकते उन के पावं पर है । सुबह की अव्वलीन साअतों तक रक़्स-ओ-सरूर (नाच गाना)का रंग जमा हुआ है ।

इस तरह के मनज़र का शायद कोईशरीफ़ उल-नफ़स ख़ौफ़ ख़ुदा और अपने दिल में इशक़ नबी (स०अ०व०) रखने वाला शख़्स तसव्वुर भी करसकता लेकिन अफ़सोस के आज शहर में इस किस्म के गंदगी से पर और बेहयाइ , मुनाज़िर रोज़ का मामूल बन गए हैं । और शादी ब्याह-ओ-दीगर तक़ारीब का हिस्सा समझे जा रहे हैं । कुछ अर्सा क़बल तक भी तक़ारीब में बड़ी मुश्किल से ग़ज़लियात का प्रोग्राम रखा जाता था फिर ग़ज़लियात की जगह आरकैस्टरा ने ली और बेहयाई को ना रोकने पर अब वो डी जे साउंड सिस्टम और नाचने वालियोंकी शक्ल में मुआशरा का मुंह चिड़ा रही है ।

हमारे शहर में एसा लगता है कि ये तक़रीब चाहे वो शादी ब्याह की ही क्यों ना हो रात दस बजे के बाद ही शुरू होती है । हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक रोलिंग में वाज़ेह तौर पर कहा है कि रात दस बजे के बाद आम मुक़ामात पर किसी किस्म का नाच गाना ममनू है क्यों कि इस से सूती आलूदगी(वोइस पोलिशन) में इज़ाफ़ा होरहा है । साथ ही अवाम बिलख़सूस मुख़्तलिफ़ बीमारियों में मुबतला मर्द-ओ-ख़वातीन को शदीद तकलीफ पहूँचती है ।

राक़िम उल-हरूफ़ ने शहर को एक ख़तरनाक वबा-ए-की तरह अपनी लपेट में लेने वाले इस भयानक रुजहान से क़ारइन को वाक़िफ़ करवाने के लिये मुख़्तलिफ़ मुहल्ला जात और शादी ख़ानों का दौरा करते हुए जायज़ा लिया और देखा कि शादी ब्याह ख़ासकर सानचक़ के मौक़ा पर बेहयाई की इसी महफिलें सजा कर इंसान के सब से बड़े दुश्मन शैतान को ख़ुश करने का सामान मुहय्या किया जा रहा है । तहक़ीक़ पर पता चला कि शहर में कुछ एसे दलाल या एजेंट हैं जिन के पास नाचने वाली लड़कियां मैडीकल हॉल्स या किसी दुकान पर जिस तरह अदवियात या एशिया-ए-ज़रुरीया दस्तयाब होती हैं ।

इसी अंदाज़ में दस्तयाब हैं । गरीब लड़कियों को जो अच्छी शक्ल-ओ-सूरत की होती हैं ये दलाल एक दिन ( रात ) के लिये 700 ता 800 रुपय अदा करते हैं । कल तक शर्माने वाली इन लड़कियों के लिये एक दिन में आमदनी बहुत बड़ी बात है । इस लिये वो आहिस्ता आहिस्ता बेहयाई और सब से बढ़ कर गुनाह के इस पेशे से मुस्तक़िल तौर पर वाबस्ता होरही हैं । इस तरह अब नाचने वालियोंको स्पलाई करने वाले दलालों के इनटरटेमनट ग्रुपस बन गए हैं ।

मुख़्तलिफ़ शादी ख़ानों में काम करने वाले वेटर्स , रोशनी का इंतिज़ाम करने वाले एलकटरिशनस और स्टेज नसब करने वाले कारीगरों से बात चीत करने पर उन लोगों ने बताया कि वो बेहयाई की इन महफ़िलों से तंग आचुके हैं इसी नाच गाने के बाइस ही उन्हें अपने घर जाने के लिये महफ़िल के खत्म होने का सुबह तक इंतिज़ार करना पड़ता है । उन अफ़राद ने बताया कि डी जे साउंड सिस्टम पर रक़्स के लिये कम उमर लड़कियों को पेश किया जाता है ।

यानी दलाल उसे भी हैं जिन के पास इस तरह की पंद्रह पंद्रह लड़कियां हैं और हक़ीक़त ये है कि मुक़ामी पुलिस को भी अच्छी तरह इलम है कि किस दलाल के पास कितनी लड़कियां हैं फिर भी वो अंजान बने रहते हैं । तबाही-ओ-बर्बादी लाने वाले इन फ़हश हरकात के दौरान अल्लाह के इन बंदों को भी देखा गया जिन के दिल ख़ौफ़ ख़ुदा से लरज़ जाते हैं और वो फ़ह्हाशी की इन महफ़िलों का बाइकॉट करते हैं ।

लेकिन इस तरह के लोगों की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ इहितजाजन महफ़िल या तक़रीब के बाइकॉट से पूरी नहीं होती बल्कि उन्हें चाहीए कि तक़रीब का बाइकॉट करने के साथ साथ पुलिस के आला ओहदेदारों को भी इन पार्टियों या महफ़िलों के बारे में इत्तिला फ़राहम करे । इस के लिये आप को सिर्फ फ़ोन पर 100 डायल करने की ज़रूरत है । हैरत तो इस बात पर है कि पुराना शहर में दोकानात 10 बजे से पहले बंद करवाई जा रही हैं लेकिन नाचने वालियों को सुबह तक नाचने की इजाज़त है ।

जहां तक मुक़ामी पुलिस की मुजरिमाना ख़ामुशी का सवाल है । ज़राए से इन्किशाफ़ हुआ है कि आला ओहदेदार शहर में जारी इस किस्म की फ़हश महफ़िलों के बारे में वाक़िफ़ नहीं । ज़राए का कहना है कि रात में नाच गाने और बाजे वगैरह की सूरत में मुक़ामी पुलिस इस्टेशन को इत्तिला देने पर उन के Manage होजाने या रक़म लेकर चले जाने के इमकानात हैं इस लिये 100 पर मैन कंट्रोल रुम को फ़ोन किया जाय तो इस का फ़ौरी असर होता है ।

फ़हश महफ़िलों का बाइकॉट करने वाले अफ़राद को ये जान लेना चाहीए कि ज़मीन पर जब बुराई फैलती है तो अज़ाब इलही इस ज़मीन को या इलाक़ा को अपनी लपेट में ले लेता है और इस की ज़द से सिर्फ बाइकॉट पर इकतिफ़ा करने वाले भी नहीं बच सकते । दूसरी तरफ़ शादी ख़ानों के मालकीन को भी चाहीए कि वो इस किस्म की तक़ारीब या महफ़िलों की इजाज़त दे कर अपनी आख़िरत तबाह ना करलें क्यों कि क़ुरआन मजीद में अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल ने बंदों को बेहयाई से रोकने का हुक्म दिया है और हमारे प्यारे प्यारे नबी (स०अ०व०) ने मुस्लमानों को श्रम-ओ-हया पाकबाज़ी और अपनी नज़रें नीची रखने की ताकीद फ़रमाईहै लेकिन अफ़सोस के हम अल्लाह और इस के रसूल(स०अ०व०) के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी करते हुए दुनिया में ज़लील-ओ-ख़ार हो रहे हैं ।

गुनाहों का बढ़ चढ़ कर इस्तिक़बाल कर रहे हैं । शैतान को ख़ुश करने एक दूसरे पर सबक़त ले जा रहे हैं । अपनी ग़लत-ओ-हराम हरकात के ज़रीया पड़ोसियों की मुसीबतों का बाइस बने हुए हैं । हमारी शादी ब्याह और दीगर तक़ारीब में इस्लामी तहज़ीब-ओ-तालीमात की कहीं भी झलक तक नज़र नहीं आती । हमारी हरकात से गैर मुस्लिम भी हैरान-ओ-परेशान दिखाई देते हैं । एसा ही एक इबरत अंगेज़ वाक़िया चन्दू लाल बारहदरी में पेश आया इस इलाक़ा में चंद रोज़ पहले बहुत धूम धड़ाके आतिशबाज़ी वगैरह के साथ बरात रवाना होरही थी कि अचानक पुलिस की रखशक गाड़ी वहां आगई और शामा नवाज़ी बंद करने की हिदायत दी। गाड़ी में मौजूद पुलिस ओहदेदार ने सख़्ती के साथ जब ये कहा कि ग्यारह बज चुके हैं बाजा बंद किया जाय ।

नौशा के वालिद तेज़ी से इस ओहदेदार की जानिब बढ़े और बेशरमी से मुस्कुराते हुए कहा बारात शादी ख़ाने से वापिस नहीं आई बल्कि अब तो शादी ख़ाना जा रही है । नौशा के वालिद के इन अलफ़ाज़ को सुन कर पुलिस ओहदेदार का मुंह हैरत के मारे खुला का खुला रह गया । ये हाल है हमारी शादियों का हम ये सोचते हैं कि हमारे घर में ख़ुशी का माहौल हो तो फिर दूसरे लोग चैन से कैसे बैठ सकते हैं ।

तस्वीर में आप देख सकते हैं कि किस तरह मर्दों के दरमियान में लड़कियां नाच रही हैं । ज़राए के मुताबिक़ दस हज़ार फीस के इलावा हज़ारों रुपये इन नाचने वालियोंपर लुटाए जाते हैं । इस बात का इन्किशाफ़ भी हुआ कि इन लड़कियों को रक़्स(नाच)के बाद दीगर कामों के लिये भी इस्तिमाल किया जा रहा है ।

ज़रूरत इस बात की है कि अवाम ना सिर्फ इन्फ़िरादी तौर पर बल्कि इजतिमाई तौर पर मुहल्ला जात की सतह पर इस बुराई को रोकने के लिये आगे आएं वर्ना ये बुराईबहुत जल्द अज़ाब इलही को दावत दे सकती है और अल्लाह के अज़ाब से कोई नहीं बच सकता ।।