पुरूषों के मुकाबले कम वेतन को लेकर महिला कंडक्टरों ने दिया इस्तीफ़ा

कोच्चि। यहां निजी बसों की महिला कंडक्टरों ने तनख़्वाह में भेदभाव बरतने का आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है। गौरतलब है कि छह महीने पहले ही एर्नाकुलम में एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत महिला कंडक्टरों की भर्ती की गई थी जिसके तहत 90 महिला कंडक्टरों को प्रशिक्षण दिया गया था।

 

साथ ही दावा किया गया था कि ये प्रोजेक्ट न्यूयॉर्क की तर्ज पर शुरू किया गया है और भारत में ऐसा पहला बड़ा प्रयोग है लेकिन छह महीने बाद निजी बसों में कंडक्टर के तौर पर सिर्फ़ एक महिला काम कर रही है।

इन इस्तीफों का कारण महिलाओं को पुरुष कंडक्टरों के मुक़ाबले बहुत कम वेतन दिया जाना बताया जा रहा है। निजी बसों में पहली महिला कंडक्टर नियुक्त की गई लिनी एमके ने कहा कि हमें शुरुआत में 12 घंटे तक काम करने के बदले मात्र 300 रुपए दिए जाते थे, जबकि पुरुष कंडक्टरों को 900 से 1000 रुपए का भुगतान किया जाता था। बार-बार मांग करने के बाद इसे बढ़ाकर 500 रुपए किया गया। हमें छुट्टियां भी नहीं मिलती।

लिनी बताती हैं कि कुदुंबश्री ने ये प्रोजेक्ट कोच्चि मेट्रो ट्रेन में महिलाओं को रोजगार दिलाने के मकसद से शुरू किया था। उनका कहना था कि उन्हें बताया गया था कि कुदुंबश्री कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रही है और मेट्रो रेल के लिए महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाना है।

 

उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें सलाह दी गई कि जब तक शहर में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट शुरू नहीं होता तब तक अनुभव के लिए उन्हें निजी बसों में काम करना चाहिए।

इस तर्क के उलट बस मालिकों का कहना है कि बस कंडक्टरी में शारीरिक काम बहुत होता है। एक निजी बस मालिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, कि कोच्चि जैसे शहर में कई बसें चलती हैं, सब-कुछ बहुत तेज़ी से करना होता है. ऐसे में बस का टायर पंक्चर होने जैसे कामों में महिलाएं उतना हाथ नहीं बंटा पाती हैं।

उधर, कुदुंबश्री मिशन के अनुसार 90 में से 26 महिला कंडक्टर अभी काम कर रही हैं. हालाँकि सरकारी विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि इस प्रोजेक्ट को फिलहाल रोक दिया गया है।