झारखंड के आदिवासी अक्सरियत इलाकों के रहने वाले पांच सौ से ज़्यादा नौजवानों को इंतज़ार है उन लोगों के पकड़े जाने का, जिन्होंने उन्हें ‘माओवादी बनाया और असलाह के साथ सरेंडर करने का लालच दिया’ना तो ये नौजवान माओवादी थे और ना ही पहले कभी इन्होंने कोई जुर्म किया था। ये तो उन बेरोजगार आदिवासी नौजवानों की जमात है जो पुलिस के कुछ मुलाज़िमीन और बिचौलियों के एक इत्तिहाद का शिकार हुई है। इसी गांव के रहने वाले है दिलीप तिरु पास की ही एक पत्थर की खदान में मज़दूरी करते हैं।
दिलीप पर ज़िम्मेदारियों का पहाड़ है क्योंकि घर में उनके अलावा कोई और कमाने वाला नहीं है। उनको लगा कि पुलिस की नौकरी अगर उन्हें मिल जाए तो उनकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। राव ने महकमा और रियासत पुलिस के अफसरों को खत लिख कर पूछा कि कोबरा बटालियन के कैम्प में 514 नौजवान किस हैसियत से रह रहे हैं? सरकार ने नक्सलवाद की मसला से निपटने के लिए कई रियासतों में सरेंडर पॉलिसी की एलान की है जिसमें सरेंडर करने वाले छापामारों के दुबारा बसाने की मंसूबा है। झारखंड सरकार के दाखिल महकमा के नायब सेक्रेटरी अरविन्द कुमार ने मर्कज़ी दाखिल वज़ारत को भेजी अपनी रिपोर्ट में तस्दीक़ की है कि नौजवानों को नक्सली बताकर सरेंडर कराया गया है और इस मामले में असलाह की तस्करी भी शामिल है।
बाशुक्रिया : बीबीसी हिंदी