पूछरइं और कड़कड़ारइं सब जने

फिर से सूली पो चढारइं सब जने
दूसरी शादी करारइं सब जने

क्या करा, बस उनकी गली में गया
एक सुर में करकरारइं सब जने

ख़ाब में होती थी ऐसी कैफ़ियत
अब तो दिन में बड़बड़ारइं सब जने

जब से जद्दे को गया बेटा मेरा
घर को मेरे आरइं सब जने

अच्छा ख़ासा था मुबारक मिस्र में
उसकी भी गड़गी उतारइं सब जने

ले को आए थे वो मुर्सी को मगर
उसको भी झूला झल्लारइं सब जने

लीबिया को घूररे थे देर से
इसकी भी हुंडी बगारइं सब जने

कब तो भी बनता तेलंगाना मियां
पूछरइं और कड़कड़ारइं सब जने

ले लिए रपस में अब सरमद को भी
उस को भी दूला बनारइं सब जने
………………………सरमद हुसैनी सरमद