संगीत और ईश्वर दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं। बिना ईश्वर के संगीत और बिना संगीत के ईश्वर की कल्पना नहीं की जा सकती। यह मानना है मेवाती घराने के शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का। ईश्वरीय सत्ता में विश्वास रखने वाले पंडित जसराज आठवें विश्व थिएटर ओलंपिक्स के 23वें दिन रविवार को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न आयाम साझा किए। उन्होंने कहा, ‘कई बार संगीत का अच्छा लगना और न लगना ईश्वर के हाथ में ही होता है।’ उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा लगता है कि आपने बढ़िया गाया है, लेकिन जब आप मंच से उतर कर लोगों के बीच जाते हैं तो वे पूछते हैं कि तबीयत ठीक नहीं है क्या? इसके विपरीत कई बार आप खुद संतुष्ट नहीं होते, लेकिन लोग दिल खोल कर आपकी तारीफ करते हैं। यह सब ऊपर वाले की पसंद और नापसंद की बात है।
आंखें बंद कीं और दिल से निकला अल्लाह-ओम
एक वाकये का जिक्र करते हुए कहा, ‘किसी ने मुझसे अल्लाह मेहरबान गाने को कहा। मैंने भी इस अनुभूति को खुद में समेटने के लिए आंखें बंद कीं और मेरे अंदर से आवाज आई। अल्लाह ओम, अल्लाह ओम। मैंने पूरा गाना गाया और अपनी बेटी दुर्गा को फोन कर बताया कि मेरे साथ ऐसा हुआ। दुर्गा ने कहा कि इस अनुभूति को आपको पूरे देश को बताना चाहिए क्योंकि इससे जो अनुभूति आपको हुई उसकी जरूरत न केवल देश को, बल्कि पूरी दुनिया को है। आज भी मैं अपना गीत अल्लाह ओम से ही शुरू करता हूं।
अनुज की तरह स्नेह करती थीं महादेवी
पं. जसराज ने प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा के साथ संबंधों को भी याद किया। उन्होंने बताया कि महादेवी उन्हें अनुज की तरह स्नेह करती थीं। उनकी तबीयत खराब हुई तो वे उनसे मिलने गए। जब वे उनके घर पहुंचे तो उनके सहयोगी ने कहा कि महादेवी जी की तबीयत खराब है वो किसी से नहीं मिलतीं। उन्होंने महादेवी जी के सहयोगी से कहा ‘हम बंबई से उन्हें प्रणाम करने आए हैं।’ पं. जसराज के साथ उनके मित्र केशव वर्मा भी थे। उन्होंने सहयोगी से कहा, ‘महादेवी जी से कहिए, पंडित जसराज आए हैं। वो अंदर गया और लौटकर कहा, ‘वो अभी किसी से नहीं मिलना चाहती हैं’। केशव ने फिर कहा ‘अरे उनसे कहो संगीत सम्राट पंडित जसराज आए हैं।’ तभी मेरी बुद्धि खुली और मैंने कहा, ‘कहो उनका अनुज आया है…’ और वो (महादेवी) वैसी ही स्थिति में सामने आ गर्इं…। इतना कह कर पं. जसराज की आंखें नम और आवाज भारी हो गई।
‘जसराज जो तुम जो गाते हो मुझे जल्दी पहुंचता है’
गायकी और ईश्वरीय सत्ता में पर भरोसे की बात करते हुए पंडित जसराज ने कहा कि उन्हें भगवान कृष्ण ने अपने बाल रूप के दर्शन दिए। उन्होंने अपने बाएं हाथ को उस ओर उठाया, जिस तरफ राजा महाराजा और उस जमाने के दूसरे गायक बैठे हुए थे। उन्होंने कहा, ‘ये पूजा पाठ, जप-तप सब इनका है, पर जो तुम गाते हो जसराज वो मुझ तक जल्दी पहुंचता है। जसराज ने कहा,‘मैं तो हनुमान का भक्त हूं, लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने बाल रूप में मुझे दर्शन दिए, जिनकी मूर्ति या छवि को मैं जानता भी नहीं था।’ जब ओंकारनाथ ठाकुर ने कहा ‘इसे पहचानो ये पंडित जसराज है’ गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास रखने वाले पंडित जसराज ने यादों एक और किस्सा सुनाया, उन्होंने बताया कि पंडित ओंकारनाथ उन्हें बेटे की तरह मानते थे। लेकिन उन्होंने मंच से उनका परिचय कराते हुए कहा ‘ये हैं पंडित जसराज’। पं. जसराज को ओंकारनाथ ठाकुर के मुंह से यह सुनकर अजीब लगा कि क्योंकि वे उनके बेहद करीब थे। गाड़ी में चलने के दौरान उन्होंने ओंकारनाथ से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘यहां बेटा- बेटा करते हैं, मंच पर क्या हो गया था?’ तो उन्होंने कहा, ‘मूर्ख, मंच से ओंकारनाथ ठाकुर लोगों को बता रहा था कि इसे पहचानो ये पंडित जसराज है।’
साभार- जनसत्ता