पूर्व इज्राइली राष्ट्रपति शेमोन पेरिज कोई शांतिदूत नहीं हत्यारा था

मशहूर ब्रिटिश लेखक और पत्रकार रॉबर्ट फिस्क ने इंडिपेंट अखबार में एक लेख लिखा है। उन्होंने लिखा है कि पूर्व इज्राइली राष्ट्रपति शेमोन पेरेज कोई शांतिदूत नहीं थे। मैंने जब सुना कि शेमोन पेरेज मृत्यु हो गई है और दुनिया वाले उन्हें शांतिदूत कहकर चिल्ला रहे हैं तो मैं उस खून, हत्या, और आग के बारे में सोचने लगा। मैंने बच्चों को बर्बाद होते देखा है। शरणार्थियों के पीड़ा को महसूस किया। उनके शव को सुलगते देखा है। वह जगह क़ाना है, जहां 106 लोगों को एक झटके में खत्म कर दिया गया, जिसमें आधे बच्चे थें। अब इज्राइली संयुक्त राष्ट्र में कहते हैं कि वे 1996 में वहां शांति के लिए गए थे।

मैं दक्षिण लेबनानी स्थित एक गांव में संयुक्त राष्ट्र सहायता काफिले के साथ गया था। हम गांव के बाहर खड़े थें। उनके गोले ठीक हमारे सर से गुजरे और शरणार्थियों में हमें नीचे झिकने को कहा। यह 17 मिनट तक चला। शेमोन पेरेज इज्रराइली राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़े हुए। यह पद उन्होंने विरासत में अपने पूर्ववर्ती इसहाक राबिन हत्या हो जाने के बाद पा लिया था। उसके तुरंत बाद उन्होंने लेबनान पर हमला करके सैन्य साख बढ़ाने का फैसला किया। फिर उस संयुक्त नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने बहाना बनाया कि कत्यूशा रॉकेट गोलाबारी हिजबुल्लाह ने किया था। पर वास्तविकता में, यह गोलेबारी एक छोटे लेबनानी बच्चे की हत्या का प्रतिरोध था। हालांकि इजरायली गश्ती दल ने शक को खारिज किया था। कुछ दिनों बाद, इज्रायली सेना लेबनान के क़ाना गांव और उसके आसपास हमले करने लगी और गांव पर आग के गोलो से तबाह कर दिया।

सबसे पहला निशाना हिजबुल्लाह के इस्तेमान वाले कब्रगाह को किया गया। फिर संयुक्त राष्ट्र के फीजीआन सेना के एक शिविर पर हमला कर दिया गया, जहां सैकड़ों नागरिक पनाह ले रखे थें। पेरेज ने कहा कि हमें इस बात का पता नहीं था कि इतने सारे लोग शिविर में मौजूद थें। यह दावा हमारे सबको चौकाने वाला था।

यह झूठ था। इज्राइलियों ने क़ाना पर 1982 के बाद से ही चढ़ाई करनी शुरू कर दी थी। वे बहुत दिनों से शिविर का वीडियों बना रहे थे। 1996 के नरसंहार के पहले से ही उनकी ड्रोने उस इलाके में गस्त रही थीं। एक तथ्य यह है कि एक संयुक्त राष्ट्र के फौजी ने जब मुझे ड्रोन का वीडियों दिया तो उन लोगों ने उसे गलत झुठलाया। मगर संयुक्त राष्ट्र ने बार-बार इज्राइल से कहा कि शिविर शरणार्थियों से भरा था। दरअसल, लेबनान की शांति में शेमोन पेरेज का यही योगदान रहा है। वह चुनाव हार गए, मगर कभी भी क़ाबा के बारे में विचार नहीं किया। लेकिन मैं उस घटना को कभी नहीं भूलूंगा।

जब मैं संयुक्त राष्ट्र फाटक पर पहुंचा तो खुन मूसलधार बह आ रहा था। मैं उसे महसूस कर सकता था। खून गोद की तरह हमारे जूतों में चिपक रहा था। वहां शरीर से अलग हाथ और पैर, बच्चों की लाशें और बिना सर के बूढ़ों की लाशें बिखरी पड़ी थीं। एक व्यक्ति का शरीर जलते हुए पेड़ के दो टुकड़ों पर लटक रहा था। क्या उसे आग पर छोड़ दिया गया था? बैरक पर एक आदमी पड़ा था। उसकी बाहों में भूरे बालों वाली एक लड़की थी। उसका हाथ उसके कंधे के पास था। उसकी आँखें उसे घूरे जा रही थीं। वह अपने घुटने टेके सुबक-सुबक अपने पिता आवाज़ दे रही थी। अगर वह जिंदा रही और आने वाले समय में एक दूसरा क़ाना नरसंहार इजरायली वायु सेना ने किया, तो मुझे शक है कि इन शांतिदूतों के मुंह से कोई एक लफ्ज़ भी निकलेगा।

संयुक्त राष्ट्र ने एक जांच घठित किया, तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि जनसंहार एक दुर्घटना थी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट आई तो उस पर एंटी-सेमेटिक होने का आरोप लगाया गया। बहुत दिनों बाद एक बहादुर इज्राइली पत्रिका ने उन सैनिकों का इंटरव्यू प्रकाशित किया जिन्होंने क़ाना में गोलीबारी की थी।

एक ऑफिसर बताता है कि वहां केवल अरब थे। वह बोला “एक अरब में कोई बुराई नहीं है।” पेरेस का सेनाध्यक्ष बेहद लापरवाह था। “मैं खेल के किसी नियम को नहीं जानता, या तो (इज्रायल) सेना या फिर सिविलियन….” पेरेस ने अपने लेबनान आक्रमण को ‘ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ वरैथ’ नाम दिया, जो जॉन स्टीनबेक से प्रेरित नहीं था। यह ‘बुक ऑफ ड्यूटरनॉमी’ (बाइबिल 32:25) में आता है- “तलवार के बग़ैर और आतंक के साथ।” 32वें अध्याय में कहा गया है-“तलवारें सड़कों पर उनकी संतति मिटा देगीं, घर के भीतर रहेगा आतंक का राज्य, सैनिक मारेंगे युवकों और कुमारियों को, ये शिशुओं को और भूरे बोलों वाले वृद्धों को मारेंगे।” क़ाना के उन 17 मिनटों का इससे अच्छा विवर्ण क्या हो सकता है।

हां, बेशक पेरेज बाद के दिनों में बदले। उन्होंने दावा किया कि एरियल शेरोन-जिसने 1982 में बेबनानी क्रिश्चन सहयोगियों द्वारा साबरा और चटिला कैम्पों में जनसंहार को देखा था। वह भी शांतिदूत था जब उसकी मृत्यु हुई। कम-से-कम उसने नोबेल पुरस्कार नहीं जीता था।

पेरेस बाद में, ‘दो राज्य के समाधान’ की वकालत करने लगे, जब यहूदीयों ने फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा कर लिया। उन्हें उत्साहित करते रहे और समर्थन देते रहे। अब हमें उनको ‘शांतिदूत’ कहना होगा। अगर हो सके तो उनके ‘फौतीनामा’ में गिनकर लिख दीजिए कि उन्होंने कितनी बार शांति शब्द का इस्तेमाल किया था। उसके बाद गिनिए की कितनी दफा क़ाना शब्द आता है।