पेहले तल्वार ओर नेजें फीर ताऊस-ओ-रबाब

ख़लीफ़ा मेहदी इब्न ए मंसूर के बारे में आम तौर पे ये लिखा जाता है कि वो बहुत सही उल-अक़ीदा और अच्छा मुसल्मान था लेकिन इंसाफ़ का ये आलम था कि एक दफ़ा एक बूढ़े शख़्स को ज़िन्दीक़ होने के इल्ज़ाम में इस के सामने लाया गया , ख़लीफ़ा ने इस के क़त्ल का इरादा किया,लेकिन बूढ़े शख़्स ने कहा मैं अल्लाह से इस गुनाह की तौबा करता हूँ ,,और माफ़ी की दरख़ास्त की । ख़लीफ़ा ने माफ़ कर दिया लेकिन जब वो जाने लगा तो ख़लीफ़ा ने अपना इरादा तब्दील कर लिया और उसे क़त्ल करा दिया ।

मेह्दी शेर भी कहता था ,एक शेर मैं कहता है मेरी एश-ओ-इशरत और लज़्ज़त ,ख़ुशबू में बसी कनीज़ों ,मूसीक़ी और दुनिया की मज़ेदार चीज़ों में है लेकिन शराब के साथ बह‌ते हुए ख़ून के नज़ारे का भी शाइक था ।

अपने बूढ़े वज़ीर अबू उबैद उल्लाह से एक दिन कहा मैं तुम्हारे फ़र्ज़ंद की दिन ए इस्लाम से वाक़फ़ीयत का इम्तेहान लेना चाहता हूँ । चुनांचे इस के बेटे को तलब किया गया क़ुरान के बारे में कुछ सवालात किए जिन के वो माक़ूल जवाब ना दे सका । ख़लीफ़ा मह्दी ने अबू उबैद उल्लाह से कहा अच्छा उठो अपने फ़र्ज़ंद को क़त्ल करो ख़लीफ़ा का हुक्म था अबू उबैद उल्लाह उठा मगर गिर पड़ा और काँपने लगा । मेह्दी ने एक और शख़्स को जो वहां मौजूद था क़त्ल का हुक्म दिया और अबू उबैद उल्लाह के रूबरू इस के जवाँसाल बेटे को बेगुनाह क़त्ल करा दिया ।

शायर बशार इस मह्दी के दौर के बारे में कहता है ए लोगो तुम्हारी ख़िलाफ़त ज़ाये होचुकी , अब अल्लाह की ख़िलाफ़त ढूंढनी होतो बांसुरी और तंबूरे में ढूंढ़ो ये एक मिसाल है मेह्दी की मूसीक़ी पसंदी और लज़्ज़त परस्ती की ।

मह्दी के बाद ख़लीफ़ा हादी भी शराब-ओ-शबाब का रसिया था , बल्कि कुछ ज़्यादा ही इस तरफ़ राग़िब था । आम तौर पर नशे की हालत में रहता । रिवायत है कि इस की माँ ख़ेज़रान ने क़तल करा दिया था , वो बुख़ार की हालत में मुंह लपेट कर लेटा हुआ था कि कुछ लोगों ने इस की माँ के इशारे पर गला घूँट कर मार डाला । ख़लीफ़ा को उमूर ममलकत से दिलचस्पी ना थी और तमाम मुआमलात पर उस की माँ की छाई थी । हारून रशीद और मामून रशीद बनू अबास के सब से अच्छे हुकमरान थे लेकिन हुदूद अल्लाह के मुआमले में इन का रेकोर्ड भी अच्छा नहीं ।

बरामिका के साथ हारून रशीद की ज़्यादती और ज़ुल्म का कोई जवाज़ पेश नहीं किया जा सकता । दरमयान में थोड़े अर्से के लिए अमीन के पास हुकूमत आई ,अमीन का किरदार औरंगज़ेब के भाई दाराशिकोह जैसा था , तब भी अपनी बुरी आदतों से तौबा ना की । अल्लामा स्युती ने इब्राहीम इब्न मेह्दी की ज़बानी ये रिवायत नक़ल की है इस मुसीबत के ज़माने में वो (इब्राहीम ) अमीन के साथ मंसूरा में था , एक रात अमीन ने मुझे बुलाया , जब में इस के पास पहुंचा इस ने कहा देखो कैसी ख़ूबसूरत शब है ,चांद जोबन पर है ,चांदी पानी में जोत जगा रही है ,एसे में शराब का दौर चल्ना चाहीए , मेंने कहा जैसे आप की मर्ज़ी । चुनांचे हम ने जी भर कर पी , इस ने अपनी ख़ास लौंडी ज़ोफ़ को बुलाया और उसे गाने का हुक्म दिया मुअर्रिख़ इबन जरीर तबरी लिखते हैं कि अमीन को हीज्ड़ों की सोहबत से बड़ी रग़बत थी और उन से क़ौम ए लूत के अमल का मुर्तक़िब होता था।

इस ने अपने महल में सैंकड़ों ख़ूबसूरत ख़वाजासरा बड़ी भारी रकमें अदा कर के जमा कर लिए थे और हरवक़त उन की तरफ़ मुतवज्जा रहता , इलावा अज़ीं खेल तमाशा दिखाने वालों और बाज़ी गरों को भी जमा रखता था ।

ख़लीफ़ा मामून के बारे में कहा जाता है कि वो बड़ा ही हलीम ,मुतहम्मिल मिज़ाज और बुर्दबार था लेकिन इस दावे को ग़लत साबित करने के लिए यही काफ़ी है इस ने ख़ल्क़ ए क़ुरान के मसले पर उस वक़्त के जय्यद उल्मा पर बहुत तशद्दुद किया , इमाम अहमद बिन हंबल ने ख़लीफ़ा के मौक़िफ़ को तस्लीम करने से इन्कार किया तो उन्हें अज़ीयतें दीं । रिवायत है कि अपने वज़ीर फ़ज़ल बिन सहल को सयासी मसलिहतों के तहत क़त्ल करवा दिया और इस के बाद इस के क़त्ल करने वालों को भी क़त्ल करा दिया । जब उन लोगों को मामून के हुक्म पर क़त्ल किया जाने लगा तो उन्हों ने कहा कि आप ही ने तो हमें फ़ज़ल बिन सहल के क़त्ल का हुक्म दिया था और अब हम को क़त्ल कराते हैं ? मामून ने कहा , मैं तुम्हें इस लिए क़त्ल कर रहा हूँ कि तुम्हें इस क़त्ल का एतराफ़ है । अली बिन मूसा रज़ा को अंगूरों में ज़हर मिला कर खिलाया और वो ख़त्म‌ होगए ।

ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्लाह मुकम्मल अन पढ़ होने के बावजूद ख़लक़ ए क़ुरान के पेचीदा फ़िक्री मसला पर वक़्त के उल्मा से उलझता रहा । ज़हनीयत क़ातिलाना थी , मामूली बात पर लोगों को क़त्ल कर देता था । उल्मा की बड़ी तादाद को सिर्फ इस लिए अज़ीयतें दे कर मौत के घाट उतारा कि वो ख़लक़ ए क़ुरान के मसला पर सरकारी मौक़िफ़ से मुत्तफ़िक़ ना थे ।

ख़ूबसूरत गुलामों को ख़रीदने का शौक़ीन था ,वस्ती एशीया से इतने ग़ुलाम ख़रीदे कि बग़दाद के शहरी उन के हाथों आजिज़ आगए इन गुलामों को ख़ूब सजा कर शहर में घूमने केलिए छोड़ा जाता था और वो लोगों को सताते थे , लोगों के घरों में घुस जाते और औरतों के साथ दस्त दराज़ी करते , यहां तक कि लोगों ने ख़लीफ़ा के लिए सर ए आम बद दुआएं देना शुरू करदीं । जब मोतसिम मरने लगा तो एक कश्ती में सवार हुआ और ज़नाम नामी गवैये को कहा गा और वो गाता रहा और मोतसिम सुन्ता रहा । गोया आख़िरी वक़्त में भी लहू-ओ-लाब में खोया रहा ।

ख़लीफ़ा वासिक़ का दौर भी उल्मा के लिए सख़्त इब्तेला का दौर था , इस के वज़ीर इब्न ए ज़य्यात ने उल्मा को अज़ीयत देने के लिए एक आहंगी तन्नूर बनाया था जिस के अंदर नोकीले कील लगे थे । जब वो ख़ुद ज़ेर इताब आया तो अपने बनाए हुए तन्नूर में डाला गया ।

ख़लीफ़ा जाफ़र मुतवक्किल ने हज़रत इमाम हुसैन की क़ब्र पर हल चलवादीया था रिवायत है कि उसे ख़ुद इस के अपने फ़र्ज़ंद मुंतसिर ने हलाक किया था जब कि वो मए नोशी और अय्याशी में मसरूफ़ था । ख़लीफ़ा मुतवक्किल के दौर में अजीब-ओ-ग़रीब वाक़ियात पेश आए , शहर के बाशिंदों ने आस्मान से एक चीख़ की आवाज़ सुनी जिस की हैबत से हज़ारों अफ़राद मर गए । मिस्र में एक इलाक़े में आस्मान से भारी पत्थर बरसे । यमन में एक पहाड़ ने इस तरह हरकत की कि लोगों के खेत एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंच गए । शहर हलब (शाम ) में एक अजीब-ओ-ग़रीब सफ़ैद परों वाला परिंदा फ़िज़ा में नमूदार हुआ और इंसानों की बोली में पुकार कर कहा लोगो अल्लाह से डरो परिंदे ने चालीस बार ये आवाज़ लगाई इस के बाद ग़ायब होगया ।

मुतवक्किल की एशपसंदी की ये कैफ़ीयत थी कि इस के हर‌म में चार हज़ार लौंडियां और ख़ूबसूरत कनीज़ें जमा थीं अल मुंतसीर बिल्लाह के बारे में यही काफ़ी है कि इस ने ताज-ओ-तख़्त के लिए बाप को क़त्ल किया था , वो ख़ुद सिर्फ छः माह तक हुकमरान रह सका और मर‌गया।