रियासती हुकूमत के पास मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत काम करनेवाले मजदूरों को अदायगी करने के लिए पैसे नहीं हैं। कई जिलों में हुकूमत के खाते में मनरेगा का पैसा बचा ही नहीं है। इससे मजदूरों का बकाया करीब 20 करोड़ रुपये का अदायगी रुक गया है। अब जिलों की तरफ से पैसों की मांग की जा रही है। मजदूरों का बकाया अदायगी नहीं होने से जिलों की परेशानी बढ़ गयी है। पैसों के किल्लत में कई मंसूबे मुतासीर हो रही हैं।
रांची जिले में दो मार्च तक मनरेगा अदायगी के लिए बैंक खाते में महज 183 रुपये बचे थे। इसी तरह रामगढ़ जिले में भी मनरेगा फायनेंस बोहरान में आ गया है। इस जिले में मनरेगा मद में हुकूमत के पास महज़ 822 रुपये बचे थे। मेदिनीनगर, लातेहार, दुमका, जमशेदपुर, चतरा जिले में भी हुकूमत के पास मजदूरी अदायगी के लिए पैसे नहीं हैं। गुजिशता दिनों एसेम्बली में भी यह मामला उठा था। हुकूमत ने माना है कि माहाना रजिस्टर के मुताबिक रियासत के मुखतलिफ़ जिलों में मार्च में नौ करोड़ से ज़्यादा का अदायगी करना है।
मनरेगा में काम करनेवाले मजदूर पैसे की आस में बैठे हैं। मनरेगा मजदूरों के लिए हुकूमत ने पैसे दस्तयाब नहीं कराये, तो नक़ल मकानी की मसला बढ़ सकती है। मुक़ामी सतह पर मजदूरों को रोजगार नहीं मिलने की हालत में वे दूसरी जगह जा सकते हैं। वहीं मनरेगा के तहत कराये जानेवाले तरक़्क़ी काम भी मुतासीर हो रहे हैं।
‘‘मरकज़ से पैसा नहीं मिला है। रियासत के पास रिवॉल्विंग फंड है। जिलों से मांग आने पर उन्हें पैसे दस्तयाब कराये जायेंगे। कुछ जिलों को होली से पहले पैसे भेजे गये हैं।
विजय कुमार सिंह, मनरेगा कमिश्नर
मनरेगा में 90 फीसद रकम मरकज़ व 10 फीसद रकम रियासत हुकूमत देती है। रियासती हुकूमत ने माली साल 2014-15 में मनरेगा के तहत मरकज़ी हुकूमत से 1485 करोड़ रुपये मिलने का इमकान कर बजट बनाया था। पर मरकज़ ने 1391.57 करोड़ रुपये देने पर मंजूरी दी थी। इस पर भी रियासती हुकूमत को मरकज़ से मनरेगा में दिसंबर 2014 तक सिर्फ 431.90 करोड़ रुपये ही मिले।
माली साल 2013-14 में मनरेगा के मद में रियासती हुकूमत के पास 68.28 करोड़ रुपये बचे थे। इस तरह चालू माली साल के दौरान दिसंबर तक हुकूमत के पास मनरेगा में खर्च करने के लिए 500.18 करोड़ रुपये ही मौजूद थे। दिसंबर तक इसमें से 477.80 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके थे।