पैसा नहीं तो ईलाज नहीं क़ियादत के दवाख़ाने में हाफ़िज़-ए-क़ुरआन ने दम तोड़ दिया

आजकल सयासी जलसों और तक़ारीब में शिरकत दिल बहलाई का बहतरीन ज़रीया तसव्वुर किया जाने लगा है । अक्सर हाज़रीन सयासी क़ाइदीन के पुर फ़रेब वादों को हक़ीक़ी वादे तसव्वुर कर लेते हैं और जब हक़ीक़त में इन क़ाइदीन से ज़रूरत पड़ जाती है तो फिर इन का हक़ीक़ी चेहरा सामने आ जाता है ।

ऐसी ही तल्ख़ हक़ीक़त का बोधन से वाबस्ता ख़ानदान को सामना करना पड़ा । जहां ना सिर्फ़ ज़िंदगी के गुज़र बसर का अहम ज़रीया हादसे की नज़र होगया । बल्के दीन हक़ीक़ी का ख़िदमत गुज़ार मज़हब इस्लाम के ख़िलाफ़ जारी पर फ़ितन साज़िशियों का डट कर मुक़ाबला करने और मुसलमानों के इमान के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सरगर्म तंज़ीम मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म नबुव्वत का एक मज़बूत सतून भी मुनहदिम होगया ।

ये वाक़िया ज़िला निज़ामबाद के बोधन टाउन में मुक़ीम इस ख़ानदान का है । जिस के अहम रुकन हाफ़िज़ मुहम्मद सलीम ख़ान थे जो पिछ्ले रोज़ एक सड़क हादसे में ज़ख़मी होगए थे ।

जिन की हैदराबाद के एक हॉस्पिटल में मौत होगई । बताया जाता है के हाफ़िज़ सलीम ख़ान निज़ामबाद किसी सयासी जलसे में शिरकत के लिए बड़े शौक़ से मोटर साएकल पर अपने मकान मालिक के साथ निकले थे ।

उन की देढ़ साल की बच्ची और बीवी घर पर मौजूद थे लेकिन हाफ़िज़ साहिब इस बात से लाइलम थे कि उन्हें रास्ते में हादसा पेश आएगा वो और उन के मकान ए मालिक हादसे का शिकार होगए । जिन्हें फ़ौरी तौर पर हॉस्पिटल मुंतक़िल किया गया जिस के बाद जैसे जैसे डॉक्टर्स मश्वरे दिए इस तरह उन्हें निज़ामबाद फिर हैदराबाद के एक कॉरपोरेट हॉस्पिटल को मुंतक़िल किया गया ।

लेकिन इस हॉस्पिटल में इंतेज़ामीया की तरफ से बताए गए अख़राजात ने उन की हिम्मत पस्त करदी । जिस के बाद मआशी हालत इंहे कॉरपोरेट के बजाय सरकारी दवाखाने से रुजू करने की इजाज़त दी ।

बताया जाता है कि इस कॉरपोरेट हॉस्पिटल ने हाफ़िज़ सलीम ख़ान के ईलाज के लिए 5 लाख का ख़र्च बताया था । जिस के बाद उन्हें गांधी हॉस्पितल मुंतक़िल करदिया गया । ताहम सरकारी दवाख़ाने में एक हुफ़्फ़ाज़ क़ुरआन और मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म नबुव्वत के ख़िदमत गुज़ार की मौजूदगी को लेकर एक मुक़ामी क़ाइद ने उन्हें मिल्लत के नाम पर क़ायम हॉस्पिटल मुंतक़िल किया ।

जहां उन का ईलाज मुम्किन हो मुफ़्त होसकता था चूँकि मरहूम हाफ़िज़ सलीम ख़ान एक हाफ़िज़-ए-क़ुरआन होने के साथ ही साथ मुसलमानों की मौजूदा वक़्त की सब से बड़ी -ओ-मज़बूत-ओ-मुतफ़क्किर मुतहर्रिक जमात मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म नबुव्वत बोधन के निगरण कार भी थे ।

लेकिन अफ़राद ख़ानदान और साथियों और रिश्तेदारों के वो तमाम कयास आराईयां-ओ-सोनच ग़लत साबित हुई । हाफ़िज़ सलीम ख़ान के ईलाज के लिए इस दवाख़ाने में 50 हज़ार रुपये लेने तक उनका ईलाज शुरू नहीं किया गया ।

ऑपरेशन कामयाब होने के एक दिन बाद हाफ़िज़ साहिब इंतेक़ाल करगए । मुक़ामी ज़राए के मुताबिक़ इस ख़ानदान के लिए 50 हज़ार की रक़म भी जमा करवाना मुश्किल था ।

जलसे में शिरकत जलसे वालों की जज़बाती तक़ारीर और उन के दावे इस दीन कि दाई ख़ानदान के काम ना आसके ।