`पोस्टमॉर्टम’

एनाउन्सर स्टेज पर आकर कुछ बोलना शुरू करता है तो लगता है कि वह ड्रामे का तआरुफ दे रहा है और जल्द ही ड्रामा शुरू होगा, लेकिन दर असल ड्रामा शुरू हो चुका होता है। एक एक फ़नकार को स्टेज पर बुला कर उसका तआरुफ देना ड्रामे के पहले या बाद में होता है, लेकिन यहाँ तो ड्रामे का ही हिस्सा है। स्टेज पर कलाकार एक दूसरे से लड़ने लगते हैं। झगड़े की वज्ल ड्रामे की नाकामी बतायी जाती है, जिससे ड्रामानिगार और फनकार हिदायतकार पर नाराज़ हैं और हिदायतकार फनकारों की लापरवाही पर ना़खुश है।

बंजारा हिल्स में लामकान थिएटर में सूत्रधार ने `पोस्टमार्टम’ ड्रामा पेश किया। सूत्रधार का यह वर्कश़ॉप प्रोडक्शन है। इस ड्रामे में दो कहानियाँ एक साथ चलती हैं। एक कहानी तो वही है, जिसमें हीरो, हिरोईन और दीगर किरदार होते हैं, लेकिन ड्रामे का असल मक़सद यह कहानी नहीं है, यह तो सिर्फ एक ज़िम्नी कहानी भर की हैसियत रखती है। ड्रामे का असल मक़सद थिएटर के दाखली मौ़जुआत की चीर फाड़ करना है। यही इस ड्रामे की दूसरी कहानी है। एक ड्रामे की तैयारी के दौरान क्या क्या होता है, हिदायतकार, मूसी़कार,अदाकार, करने वाले कलाकार और थिएटर पर उनका साथ देने वाले मुआविन फनकार.ये सभ ड्रामे का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिनड्रामे के शायक़ीन इसके बारे में ज्यादा नहीं जान पाते।

बैक स्टेज’ किस तरह काम करता है और फनकार जब अपने डॉयलॉग भूल जाते हैं अथवा डॉयलॉग आगे पीछे हो जाते हैं तो किस तरह तवाज़ुन बनाया जाता है, इन सब बातों का पोस्टमार्टम इस ड्रामे में किया गया है। थिएटर के ड्रामे की दीवारें, खिड़कियाँ, झरोखे,पर्दे और बहुत कुछ जो ख्याली होता है, किस तरह उसे निभाया जाता है, उसकी बहुत उम्दा पेशकश इस ड्राम में की गयी। मिलिंद तिखे के लिखे ड्रामा `पोस्टमॉर्टम’ में ़जरूरत के मुताबिक़ नये मौज़ूआत और मुक़ामी बोली/ज़ुबान का असर इसमेव है।

फनकारों में हैदराबादियत के साथ-साथ एक तरह के मिनी भारत का एहसास होता है, हैदराबादी, हिन्दी, बांगला एवं मराठी मादरी ़जुबान रखने वाले फनकारों के साथ हिंग्लिश के असर वाली नयी नसल के ये फनकार अपनी अपने अंदाज़ में ज़बर्दस्त मिज़ाह पेश कर पाते हैं।

हिदायतकार विनय वर्मा के इस ड्रामे में में सौरभ घरिपुरीकर, नितिन फडणवीस, एम.ए. रज्जाक, शायंतुनी घोष, अमित शर्मा, समराट सिंह राठौड, संकेत शर्मा, मुहम्मद मुहियुद्दीन क़ुरैशी ने काम किया है।