पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप्स, कॉलेजेस तलबा को रक़म हवाले क्यों नहीं करते?

तालीमी इदारों के क़ियाम का मक़सद नई नसल को ज़ेवरे तालीम से आरास्ता करते हुए उन्हें एक अच्छा और कामयाब इंसान बनाना होता है। इस के इलावा तालीमी इदारे ऐसे तलबा तैयार करते हैं जो मुल्क और मिल्लत का सरमाया होते हैं। ऐसे में अच्छे शहरियों को मंज़रे आम पर लाने में तालीमी इदारों का अहम रोल होता है।

जहां तक स्कूल्स और कॉलेजेस का मुआमला है ये हमारे मुल्क, रियासत, शहर और बस्तियों में नाख़्वान्दगी का ख़ातमा करते हैं लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि बाअज़ कॉलेजेस इस क़दर कमर्शियल हो गए हैं कि वो तालीम को तिजारत बनाने में कोई कसर बाक़ी रखना नहीं चाहते।

क़ारईन हुकूमते हिन्द अक़लीयती तलबा को पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप्स फ़राहम करती है और ये स्कॉलरशिप्स रियासती महकमा अक़लीयती बहबूद के तवस्सुत से दी जाती है लेकिन आजकल इस बात की शिकायात आम हैं शहर के कॉलेजेस में हुकूमत की जानिब से स्कॉलरशिप्स की जो रक़म फ़राहम की गई उसे काफ़ी अर्सा गुज़र जाने के बावजूद तलबा और तालिबात के हवाले नहीं की गई जब कि औलियाए तलबा बार बार कॉलेजेस के चक्करें काट रहे हैं।

इन औलियाए तलबा का ये भी कहना था कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट ऐंड एप्लीकेशन सिस्टम ऑफ़ स्कॉलरशिप्स का जायज़ा लेने से पता चलता है कि बेशतर तलबा और तालिबात की स्कालरशिप की रक़म कॉलेजेस के अकाउंट्स में आ गई है लेकिन इस बारे में कॉलेजेस का मौक़िफ़ कई शुकूक और शुबहात को जन्म देता है।