प्रणब मुखर्जी के ख़िलाफ़ दरख़ास्त पर‌ सुप्रीम कोर्ट में समाअत की शुरुआत‌

सुप्रीम कोर्ट ने साबिक़ लोकसभा स्पीकर पी ए संगमा की दरख़ास्त पर समाअत आज शुरू की जिस में प्रणब मुखर्जी के बहैसीयत सदर इंतिख़ाब को चैलेंज किया गया है। चीफ़ जस्टिस अल्तम‌श कबीर की ज़ेर-ए-क़ियादत दस्तूरी बैंच ने इस मामले पर ग़ौर के लिए अगले समाअत 20 नवंबर को रखी गई है और उस वक़्त मुख़्तलिफ़ फ़रीक़ैन को दरख़ास्त के काबिल-ए-क़बूल होने पर इबतिदाई मुबाहिस का मौक़ा फ़राहम किया जाएगा , जिसके बाद इस माम‌ले पर नोटिस जारी की जाएगी।

शुरुआती समाअत के दौरान पी ए संगमा ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि उन्होंने जो दरख़ास्त दाख़िल की है इस पर कार्रवाई की जा सकती है। इस दरख़ास्त के काबिल-ए-क़बूल होने के बारे में शुरुआती समाअत के बाद दस्तूरी बैंच ये फ़ैसले करेगी कि बाक़ायदा समाअत की जाये या नहीं।

इस दस्तूरी बैंच में जस्टिस सत्ता शिवम, जस्टिस एस एस नजर, जस्टिस जे चलमेशोर और जस्टिस रंजन गोगोई शामिल हैं। सीनीयर एडवोकेट राम जेठमलानी इस मामले में संगमा की तरफ़ से पेश हुए। जबकि सदर जमहूरीया की नुमाइंदगी सीनीयर ऐडवोकेट हरीश साल्वे ने की।

अटार्नी जनरल जी ई वहाँ वित्ती अदालत की ज़रूरत पर मुआवनत कर रहे थे। ऐसे उमूर में सुप्रीम कोर्ट क़वाइद के मुताबिक़ उन्हें ज़रूरी फ़रीक़ के तौर पर मुआवनत करनी होती है। पी ए संगमा ने अपनी दरख़ास्त में कहा कि मुमताज़ कांग्रेस लीडर प्रणब मुकर्जी इस जलील-उल-क़दर ओहदे के लिए अहल नहीं हैं क्योंकि जिस दिन उन्होंने सदारती इंतिख़ाब के लिए पर्चा नामज़दगी दाख़िल की, तब वो मुनफ़अत बख़श ओहदे पर फ़ाइज़ थे।

संगमा का ये इस्तिदलाल है कि प्रणब मुकर्जी बहैसीयत सदर नशीन इंडियन स्टाटिकल‌ इंस्टीटियूट कोलकता मुनफ़अत बख़श ओहदा पर ना सिर्फ़ ये कि बरक़रार थे बल्कि वो जिस वक़्त सदारती दौड़ में शामिल हुए, लोक सभा में क़ाइद कांग्रेस पार्टी भी बरक़रार थे। पी ए संगमा मेघालय के कबायली लीडर हैं और उन्हें सदारती इंतिख़ाबात में शिकस्त हुई।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दरख़ास्त दायर करते हुए प्रणब मुकर्जी के बहैसीयत सदर इंतिख़ाब को ग़लत क़रार देते हुए उन्हें इस ओहदे के लिए मुंख़बा सदर क़रार देने की ख़ाहिश की। संगमा ने अपनी दरख़ास्त में कहा कि प्रणब मुकर्जी का बहैसीयत सदर इंतिख़ाब गै़रक़ानूनी और बिलकुल्लिया ग़लत है और इस इंतेख़ाब को कुलअदम किया जाना चाहीए।

संगमा की इस नौईयत की दरख़ास्त पहली बार‌ दाख़िल नहीं की जा रही है।पहले भी कई बार‌ सदारती इंतिख़ाबात को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया और 1969 में वी वी गिरी के बहैसीयत सदर इंतिख़ाब के ख़िलाफ़ ऐसी ही एक दरख़ास्त पर तफ़सीली समाअत भी हुई।