नई दिल्ली, 04 जनवरी( एजेंसी) अब जबकि सारे मुल्क में इस्मतरेज़ि जैसे घिनौने जराइम का इर्तिकाब करने वालों को सज़ाए मौत दिए जाने के मुतालिबा में शिद्दत पैदा होती जा रही है वहीं अगर उस ज़माने पर नज़र डाली जाये जब मुल्क की सदर प्रतिभा पाटिल हुआ करती थीं उस वक़्त उन्होंने मर्कज़ी हुकूमत की सिफ़ारिश पर एक दो नहीं बल्कि 35 मुल्ज़िमीन की सज़ाए मौत को सज़ाए उम्र क़ैद में तब्दील कर दिया था जिनमें इस्मतरेज़ि का इर्तिकाब करने वाले सात मुल्ज़िमीन भी शामिल थे ।
लिहाज़ा 23 साला इस्मतरेज़ि की शिकार मतोफ़ीह से मुताल्लिक़ अवामी ग़म-ओ-ग़ुस्सा में हनूज़ कमी वाकेय् नहीं हुई है और इस पस-ए-मंज़र में साबिक़ सदर जम्हूरीया के इस फ़ैसले पर शदीद तन्क़ीदें की जा रही हैं जहां उन्होंने सज़ाए मौत पाने वाले इस्मतरेज़ि के साथ मुल्ज़िमीन को सज़ाओ को उम्र क़ैद से तब्दील कर दिया था ।
मुल्क के दस्तूर के आर्टीकल 72 ने सदर जम्हूरीया को बेशक ये इख़तियार दिया है कि वो सज़ाए मौत पाने वाले किसी भी मुल्ज़िम की रहम की दरख़ास्त को मंज़ूर करते हुए उसे सज़ाए उम्र क़ैद में तब्दील कर दे लेकिन इसके लिए भी उन्हें हुकूमत की सिफ़ारिशात के मुताबिक़ अमल आवरी करनी पड़ती है । सदर जमहूरीया अकेले अपनी मर्ज़ी से काम नहीं चला सकते बल्कि उन्हें मर्कज़ की तजावीज़ को भी मद्द-ए-नज़र रखना पड़ता है । लिहाज़ा ये बात अब वसूक़ से कही जा सकती है कि सदर जम्हूरीया को किसी भी मुल्ज़िम को माफ़ कर देने का इख्तेयार सिर्फ़ दस्तूरी नौईयत का है सदर जम्हूरीया इस इख्तेयार को शख़्सी तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते ।
मुंदरजा बाला तमाम मुआमलात में वज़ारत-ए-दाख़िला ने जराइम के पस मंज़र का बग़ौर जायज़ा लिया था और वज़ारत क़ानून से मुशावरत करते हुए सदर जम्हूरीया को अपने मश्वरे और तजावीज़ पेश किए थे । प्रतिभा पाटील ने बुंडू बाबू राव टकाड़े की सज़ाए मौत को उस वक़्त माफ़ कर दिया था जब बेलगाम की जेल में 2007 में एड्स से उसकी मौत वाकेय् हो गई थी । इसने 2002 में कर्नाटक के बागलकोट में एक 16 साला लड़की की इस्मतरेज़ि की थी । इसी तरह उत्तर प्रदेश के बन्टू और सतीश की सज़ाए मौत भी सज़ाए उम्र क़ैद में तब्दील की गई थी और वो तमाम मुल्ज़िमीन इस्मतरेज़ि के मुर्तक़िब हुए थे ।