युवा हल्लाबोल आंदोलन ने मोदी सरकार द्वारा एसएससी चेयरमैन श्री असीम खुराना को पद से हटाने की बजाए एक वर्ष का एक्सटेंशन देने के फ़ैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। केंद्र सरकार ने इस बाबत एसएससी के नियमों में संशोधन करके चेयरमैन पद के लिए अधिकतम आयु सीमा को 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 भी कर दिया है।
ज्ञात हो कि कर्मचारी चयन आयोग यानी एसएससी के ख़िलाफ़ हुए देशव्यापी आंदोलन में छात्रों के आरोप और आक्रोश के केंद्र में चेयरमैन असीम खुराना थे। आंदोलनकारी युवाओं की मांग थी कि चेयरमैन को तुरंत हटाया जाए। लेकिन 62 वर्ष की आयु पूरी हो जाने के कारण उनका कार्यकाल मई के महीने में समाप्त होने वाला था।
एसएससी के ख़िलाफ़ चले देशव्यापी आंदोलन के दौरान हर दिन चेयरमैन साहब ऊलजलूल बयान देते रहते थे। पहले तो अपनी कोई भी ग़लती या कमी मानने से ही साफ साफ इनकार कर दिया, फ़िर कहा कि आंदोलनकारी छात्र किसी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित और कोचिंग संस्थान द्वारा प्रायोजित हैं, फिर कहा कि टेक्निकल ग्लिच हो गया, फिर कहा कि कुछ गड़बड़ियां तो हुई हैं, फिर कहा कि सीबीआई जाँच के लिए पर्याप्त सबूत हैं। इस तरह और भी कई बयानों और कार्यवाई के कारण चेयरमैन असीम खुराना पर से देशभर के छात्रों का विश्वास उठ चुका है।
केंद्र सरकार के फैसले पर बोलते हुए युवा नेता अनुपम ने कहा कि एक संस्थान के तौर पर कर्मचारी चयन आयोग में आज छात्रों का भरोसा नहीं है और इस अविश्वास के अहम क़िरदार खुद चेयरमैन ही रहे हैं। ऐसे में आयोग में युवाओं का विश्वास बहाल करने के लिए आवश्यक था कि आंदोलन की मांगों को माना जाए, एसएससी में सुधार किए जाएं और चेयरमैन एवं प्राइवेट वेंडर सिफी को तुरंत हटाया जाए। लेकिन ये देखकर अत्यंत दुख होता है कि सरकार युवाओं की जायज़ मांगों के प्रति इतनी गम्भीर और असंवेदनशील है।
इन परिस्थितियों में आंदोलन की जायज़ मांगे मानना तो दूर, मोदी सरकार ने श्री असीम खुराना के कार्यकाल को और बढ़ा दिया, वो भी नियमों में बदलाव करके। यह निर्णय देशभर के युवाओं को चिढ़ाने जैसा है, बेरोज़गारी की गंभीर समस्या का मज़ाक बनाने जैसा है और मोदी सरकार की गंभीरता को भी उजागर करता है। आज ज़रूरत है कि देश के सभी जागरूक नागरिक इस युवा-विरोधी सरकार की सच्चाई को जन जन तक पहुंचाएं और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ एक बड़े आंदोलन की तैयारी करें।