प्रो. अ़खतरुल वासे

प्रो. अ़खतरुल वासे इस्लाम और हिन्दुस्तानी मुसलमानों पर मुतालेआ और तालीम के शोबे में ख़ास म़ुकाम रखते हैं। हिन्दुस्तानी मुसलमानों के समाजी, तहज़ीबी व स़काफ़ती मामलों से मुताल्ल़ुक कई इदारों के नाज़िम के तौर भी उन्होंने अपनी क़ाबिलियत को मनवाया है। हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में मुसलमानों की फिक्र और उनकी ताऱीक पर कई पहलुओं पर रोशनी डालते हुए उन्होंने ने चार जर्नल शाये किये। इन जर्नलों के इडिटर के तौर पर दुनिया भर के माहिरीने तालीम और दानिवश्वरों में वे इज्जत की निगाह से देखे जाते हैं।

1 सितम्बर 1951 को अलिगढ़, उत्तर प्रदेश में अ़खतरुल वासे की पैदाइश हुई। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में `इस्लामी तालीमात और मुस्लमान’ के मौज़ू पर अपनी आला तालीम मुकम्मिल की और कुछ दिन तक यहाँ पर तदरीस का काम भी अंजाम दिया। बाद में 1977 में जामिया इस्लामिया चले आये। 1991 से वे इस्लामी तालीमात के प्रोफेसर हैं। 1999 से जामिया मिल्लिया, नई दिल्ली में इस्लामिया में ज़ाकिर हुसैन इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज़ के एज़ाज़ी डॉयरेक्टर के तौर भी खिदमात अंजाम दे रहे हैं। यूनिवर्सिटी में और उसके बाहर, मुल्क और बेरून मुल्क कई इदारों में उन्होंने तालीमी और एड्मिनिस्ट्रेटिव ओहदों पर खिदमात अंजाम दी हैं।

इस वक़्त वो दिल्ली उर्दू एकेडमी के नायब सदर, नेशनल कौन्सिल बराए तरक्की उर्दू ज़बान (एनहीपीयूएल) की बोर्ड के रुक्न, एचआईवी/एड्स पर बनी इंडिया इन्टरफेथ कोएलिशन के सदर, अजमेर दरगाह कमिटी के सदर, आज़ाद एजुकेशनल, फाउण्डेशन के ट्रेजरर, एचआईवी एड्स पर यूनेस्को की जानिब से बनाई गयी साउथ एशिया इन्टर रिलिजियलस कौन्सिल के जनरल सेक्रेटरी और जामिया मिल्लिया के ह्यूमैनिटीज एण्ड लैंग्वेजस के डीन फैकल्टी होने के अलवा कई इदारों से जुड़े हैं।

कई अ़कीदों के मानने वालों के दरमियान साज़गार माहौल बनाने के लिए जारी तहऱीक में प्रो. वासे सब से आगे रहने वाली मुस्लिम शख्सियतों में से एक हैं। इस सब से आगे हिन्दुस्तानी मुसलमानों की पहचान की हिफाज़त, रवादार, अमनपसंद शहरियों के तौर पर उनकी शबीह को पेश करने और इन्साफ हासिल करने के लिए तरक्की के लिए उनकी दीगर हिन्दुस्तानियों के एकसाँ हिस्सेदारी का दावा पेश करने में प्रो.वासे पेश पेश रहे हैं।

सेक्यूलर हिन्दुस्तान क़ौम में मुसलमानों के मज़हबी अ़कीदे के हिफ़ाज़त की नुमाइंदगी में उन्होंने अहम रोल अदा किया है। जिन इदारों की रहनुमाई उन्होंने की है, वहाँ समाज़ी व स़काफती शोबों में गंगा जमुनी तहज़ीब की हिफ़ाज़त के लिए अहम रोल अदा किया है।

प्रो. वासे को 65 तालीमी और तालीम से जुड़े दीगर शोबों में 65 दौरो की दावत दी गयी, जिनमें यूनिसेफ, यूएनडीपी, युनीएड्स, युएनएफपी, यूएनएचआरसी और दीगर इस्लामी इदारे शामिल हैं।
अलीगढ़ एलुमनी असोसिएशन की जानिब से पहला बैनुल अ़कायद सर सय्यद अहमद ख़ान अवार्ड से नवाज़े गये प्रो. वासे को कई और एजाज़ात से नवाज़ा गया। 1996 में उर्दू अकादमी दिल्ली का मौलाना मौलाना मुहम्मद अली जोहर अवार्ड, 1985 में सर सय्यद की तालीमी तहरीक पर उत्तर प्रदेश अकादमी अरार्डर भी उन्हें दिया गया। 2008 में फुल ब्राइट फेलोशिप पाने वाले प्रो. अ़खतरुल वासे यह एजाज पाने वाले जामिया मिल्लिया के पहली मुस्लिम श़ाख्सियत हैं।