‘मज़हबी दंगा’ जी दंगा जिसका नाम सुनते ही किसी भी इंसान की आवाज़ एक पल के लिए थम सी जाती है और जिस्म सिहर जाता है लेकिन इन दंगो की वजह से न जाने कितनी जाने मौत की आगोश में समा जाती है और अनगिनत लोग इसकी ज़द में आकर शिकार होते हैं। धार्मिक कट्टरता तो सभी लोग दिखाते है लेकिन उन लोगो का क्या होगा जिनकी औरते विधवा, बच्चे यतीम और परिवार बेसहारा हो जाता है। चाहे दंगो का शिकार किसी भी मज़हब का हो लेकिन असल शिकार तो इंसानियत होती है।
मुल्क की सरकारों की माने तो हर सूबे की अपनी-अपनी दफली, अपना-अपना राग है। कदम-कदम पर भाषा, कानून और जिम्मेदारियाँ बदलते है तो कदम-कदम पर राज्य सरकारे बदलती है। ऐसे में एक आम आदमी जो अपनी रोजमर्रा की रोजी-रोटी तलाशने में परेशान रहता है उसको सिर्फ अपनी फाका-कशी की फिक्र होती है, न कि मजहब की। इसके बावजूद न चाहते हुए भी वे इन दुशवारियों से दो-चार हो जाता है। की मंदिर तो कहीं मस्ज़िद और कहीं गुरूद्वारा-चर्च की बात हो जिसकी तादात जहाँ जितनी है वह उतना बेलगाम और तानाशाह हो जाता है और जिनकी तादात कम से कम होती है उसे दबाने, कुचलने और सताने वाले भी हज़ार होते हैं।
राजनीतिक पार्टिया चाहे वह केन्द्र में हो या राज्य में लेकिन दंगा पर सियासत करने का कोई भी मौक अपने हाथों से नहीं गवाना चाहती है। पहले दंगे भड़काना और उसका विरोध करना फिर सारी जिम्म़दारी किसी और पर थोप देना इन सियासतदानों की जन्मजात आदत रही है।
आज़ादी से पहले हिन्दू महासभा, आर.एस.एस. और मुस्लिम जमातों ने अपने वजूद को कायम रखने के लिए सियासी फसाद का सहारा लिया तो वहीं केन्द्र सरकारों में नेहरू, इन्दिरा, राजीव गाँधी, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी पर भी दंगो पर सियासत करने के आरोप लगते रहे हैं।
अयोध्या विवाद, गोधरा या मुज़फ्फर नगर! जरा सी बात चिंगारी लगाने की ज़रूरत होती है और दंगा भड़कने में देर नहीं लगता।
इकबाल और टैगोर के नगमें पढ़ने वाली कौमें केन्द्र और सूबे में बैठी सरकारों के एक इशारे पर इबलीस और रावण बनकर गली, चैराहों और सड़कों पर राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और देशभक्ति की चाशनी में डूबा हुआ लहु नज़र आने लगता है।
कौन सी सरकारे कितनी धर्मनिर्पेक्ष हैं इसका अन्दाजा गृह मंत्रालय की आर.टी.आई. से मिली एक रिपोर्ट से पता चलता है। जिससे खुलकर ये बात सामने आई है कि साल 1990 से 2015 के बीच 25 हज़ार दंगे हुए जिनमें साढ़ दस हज़ार लागों ने अपनी जाने गवाई हैं।
क्या है मामला——–
उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले के उयिसां गांव निवासी ’शम्स तबरेज़ हाशमी’ ने साल 1990 से 2015 तक देश के सभी राज्यों में हुए धार्मिक दंगो, दंगो में मरने वाले और घायल होने वालो की संख्या की जानकारी लेने के लिए 21 जनवरी को प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग नई दिल्ली में एक आॅनलाईन आर.टी.आई. फाईल किया, जिसे गृह मंत्रालय में 27 जनवरी को ट्रांसफर कर दिया गया और गृह मंत्रालय उप सचिव रीता गुहा ने 8 फरवरी को शम्स तबरेज़ हाशमी को डाक से रिपोर्ट भेजी जो 15 फरवरी को आवेदनकर्ता को प्राप्त हो गई।
रिपोर्ट में क्या है खास——-
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 1990 से 2015 तक इन 25 सालों में 25337 दंगे हुए जिनमें मरने वालों की संख्या 10452 तथा घायलों की संख्या 30515 है।
इस रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करे तो –
साल 1990 में 1593 दंगे जिसमें 1835 लोग मारे गए, 1991 में 1727 दंगे जिसमें 878 लोग मारे गए, 1992 में 3536 दंगे जिसमें 1972 लोग मारे गए, 1993 में 1042 दंगे जिसमें 1135 लोग मारे गए।
सबसे ज्यादा दंगे उत्तर प्रदेश में हुए है लेकिन अखिलेश और मुलायम सिंह यादव की सरकार में आने के बाद से दंगो का ग्राफ आसमान छुता नज़र आ रहा है यानी सबसे ज्यादा दंगे समाजवादी पार्टी की सरकार में 637 दंगे हुए हैं जिनमें 162 लोग मरे और 1614 लोग घायल हुए है। अखिलेश हुकूमत में सबसे ज्यादा 247 दंगे साल 2013 में हुए।
कौन है ज़िम्मेदार——
इस रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि संविधान के उपबंधो के अनुसार लोक प्रशासन और पुलिस राज्य सरकारों के दायरे में आती हैं जिनका केन्द्र सरकार से कोई जिम्मेदारी नहीं है साथ ही कानून व्यवस्था, अपराधों की राक-थाम और जनधन की हानि के लिए सीधे राज्य सरकारें जिम्मेदार होती है।
इस रिपोर्ट से साफ जाहिर है कि दंगो की राजनीति के पीछे साधे तौर पर राज्य सरकार जिम्मेदार है चाहे वह उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार ही क्यों न हो।
अपनी रिपोर्ट के बारे में ‘द सिआसत डेली’ से बात करते हुए आर.टी.आई आवेदनकर्ता शम्स तबरेज़ हाशमी ने कहा: ‘’दंगो पर सियासत करना मुलायम से बेहतर कोई नहीं जानता, जिनकी बुनियाद ही दंगे और संघ चालको की सेवा पर टिकी है। दंगे खुद कराते है और आरोप दूसरो पर मढ़ते हैं। मैं यह सवाल उत्तर प्रदेश सरकार से पूछना चाहता हूँ कि साध्वी प्राची, साध्वी निरंजन ज्योति, साक्षी महाराज और सांसद योगी आदित्य नाथ चाहे कितना ही ज़हर अपने भड़काऊ भाषणों में उगलें लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी तरफ से इनके विरूद्ध कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की।‘’
समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव मुखिया और उनकी सरकार उत्तर प्रदेश में भाजपा पर दंगे कराने का आरोप लगाते रहे हैं जबकि इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश की सरकार सीधे तौर पर दंगा कराने में संलिप्त है। अपनी खामियाँ और नाकामी को छुपाने के लिए भाजपा पर आरोप मढ़ देते हैं। जबकि दंगे सरकार के इशारे पर होते है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
शम्स तबरेज़ हाशमी की रिपोर्ट