* मैं राष्ट्रपती पद छोड़ने के लिए मजबूर था , पुर्व रष्ट्रपती डाक्टर कलाम
नई दिल्ली । पुर्व राष्ट्रपती एपीजे अबदुलकलाम ने अपनी किताब में जो बातें लिखी हैं इन में से एक वाक़िया ये भी ब्यान किया है कि 2004 से जुलाई 2007 के दरमयान यू पी ए हुकूमत के साथ संबंध अच्छे नहि थे । साल 2005 में एक वक़्त एसा आया था कि डाक्टर कलाम ने राष्ट्रपती पद से अस्तीफ़ा देने का फ़ैसला कर लिया था ।
उन्हों ने ओहदा छोड़ने के लिए अपना अस्तीफ़ा लिखा लेकिन दूसरे दिन सुबह फ़जर की नमाज़ की अदायगी के बाद फ़ैसला बदल दिया । मनमोहन सिंह ने इन से अपील की तो उन्हों ने क़ौमी सूरत-ए-हाल के तनाज़ुर में अपना इरादा बदल दिया । नई किताब ट्रेनिंग प्वाईंट में डाक्टर अबदुलकलाम ने अपने राष्ट्रपती के समय अहम यादों को लिख लिया है ।
यू पी ए हुकूमत से ताल्लुक़ात खराब होने पर वो ये ओहदा छोड़ देना चाहते थे उन्हों ने अपना अस्तीफ़ा का पत्र उन से मुलाक़ात के लिए राष्ट्रपति भवन आने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दिखाया । उन्हों ने रीझाईन लेटर देखने के बाद मुझ से अस्तीफ़ा ना देने की अपील की और चले गए मैंने ज़मीर की आवाज़ पर अस्तीफ़ा का इरादा किया था लेकिन प्रधनमंत्री ने क़ौमी सूरत-ए-हाल के पेशे नज़र उसी ज़मीर का हवाला दिया ।
इस के इलावा उस वक़्त उप राष्ट्रपती भीरोन सिंह शेखावत भी विदेशी सफ़र पर थे । उन्हों ने अपनी किताब में सज़ाए मौत से जुडे कई केसों के अलतवा के बारे में भी लिखा है । पी टी आई ने इस किताब के हवाले से बताया कि डाक्टर अबदुलकलाम के मुताबिक़ राष्ट्रपति भवन में सज़ा ए मौत का सामना करने वाले कई मुजरिमीन के केस ज़ेर-ए-इलतिवा हैं ये एक तकलीफ़देह काम है जिस पर फ़ैसला करते हुए कोई भी सदर ख़ुशी महसूस नहीं करेगा ।
इन केसों के बारे में मेरा ख़्याल था कि मुझे एक आम शहरी के रुप से इस जुर्म की नौईयत का जायज़ा लेना चाहिये । अफ़ज़ल गुरु और अजमल क़स्साब जैसे मुजरिमीन को जल्द फांसी देने के मुतालिबा के पस-ए-मंज़र में उन्हों ने लिखा है कि सजा ए मौत की फाईलों पर दस्तख़त करना किसी भी सदर के लिए ख़ुशी का लम्हा नहीं होता । इस लिए राष्ट्रपति भवन में ऐसे केसों की बड़ी तादाद ज़ेर-ए-इलतिवा है ।
उन्हों ने लिखा है कि कोलकता में एक मासूम लड्की का क़तल करने वाले धनंजय चटर्जी को सज़ाए मौत देने की तौसीक़ की थी क्यों कि ये घिनावना जुर्म था ।