फरीद अंजुम की एक मि़ज़ाहिया ग़ज़ल

शेख़ की इक दो नहीं हैं, सात सात
दिलानातुन, बेगमातुन, माशूक़ात

लीडरां , हर रोज़ देते हैं तुड़ी
मछलियातुन, मुर्गियातुन, बकरियात

और बस खावें , बिचारे शाएरां
झिड़कियातुन, गालियॉतुन, बेलनात

याद करते हैं फ़क़त, संडे के दिन
पानियातुन, साबुनातुन, ग़ुसलियात

महफ़िल-ए-शेरो सुख़न की जान हैं
कमसिनातुन, शाइरातुन, बिवटियात

फिर से कईकू, चाटरइं बेगम तुमीं
चटनियातुन, कैरियातुन, इमलियात