फलस्तीन का मामला पुरे इस्लामिक जगत पर असर डाल रहा है!

फ़िलिस्तीन की धरती इस समय महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुज़र रही है वैसे यह देश पिछले सत्तर साल से अधिक समय से बड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं का केन्द्र बना रहा जिसका असर पूरे इस्लामी जगत और पूरे अरब जगत पर देखने में आया।

इस समय स्थिति यह है कि फ़िलिस्तीन के बड़े अधिकांश भाग पर ज़ायोनियों ने क़ब्ज़ा करके वहां इस्राईल की स्थापना कर रखी है साथ ही उन्होंने, लेबनान, सीरिया और जार्डन जैसे देशों के कुछ भागों पर क़ब्ज़ा कर रखा है। ओस्लो समझौते के नाम पर फ़िलिस्तीनियों को यह धोखा दिया गया कि उन्हें फ़िलिस्तीन देश की स्थापना करने का अवसर दिया जाएगा लेकिन इसकी शर्त यह है कि वह इस्राईल को मान्यता दें।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, फ़िलिस्तीन में उस समय भी बड़ी संख्या में लोग इससे सहमत नहीं थे मगर फ़िलिस्तीनी नेता यासिर अरफ़ात ने यह समझौता कर लिया। फ़िलिस्तीनी प्रशासन के वर्तमान प्रमुख महमूद अब्बास की भी इस समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका थी।

इस प्रक्रिया के तहत दो समझौते हुए एक समझौता 1993 में वाशिंग्टन डीसी में और दूसरा समझौता 1995 में मिस्र के तबा शहर में हुआ। इतना लंबा समय बीत जाने के बाद आज हालत यह है कि बचे खुचे फ़िलिस्तीनी हिस्सों को भी इस्राईल हड़प लेने की बात कर रहा है।

इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू जो चुनावी प्रचार में व्यस्त हैं शनिवार को भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि वह पश्चिमी तट के इलाक़े में मौजूद ज़ायोनी कालोनियों को इस्राईल का हिस्सा बना लेने का इरादा रखते हैं।

बैतुल मुक़द्दस पर इस्राईल पहले से ही दावा कर रहा है और अमरीका ने अपना दूतावास वहां स्थानान्तरित करके यह साबित कर दिया कि वह इस्राईल की इस साज़िश में पूरी तरह शामिल हैं।

अमरीका ने तो इस्राईल के क़ब्ज़े में मौजूद सीरिया के गोलान हाइट्स के इलाक़े को भी इस्राईल का भाग कह दिया है हालांकि अमरीका की इस घोषणा का दुनिया भर में विरोध किया गया।

फ़िलिस्तीन का एक छोटा से भाग ग़ज़्ज़ा पट्टी है जहां फिलिस्तीनी आबाद हैं। भूमध्यसागर के तट पर स्थित ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनी संगठनों की ओर से ज़ोरदार प्रतिरोध हो रहा है। वहां मौजूद हमास और जेहादे इस्लामी जैसे संगठनों ने हथियार उठाया और ज़ोरदार प्रतिरोध से पूरे इस्राईली इलाक़ों को असुरक्षित बना दिया।

हाल ही में फ़िलिस्तीनी संगठनों ने मिसाइल हमला किया तो यह मिसाइल एक सौ बीस किलोमीटर की दूरी तय करके और इस्राईली राजधानी तेल अबीब के ऊपर से गुज़रते हुए मिशमेरित नामक ज़ायोनी बस्ती पर गिरा।

इस साफ़ मतलब यह है कि मिसाइल सटीक रूप से अपना निशाना भेदने में सक्षम है और यही नहीं इस्राईल की बहुचर्चित मिसाइल ढाल व्यवस्था आयरन डोम को उसने नाकाम बना दिया। अब यह ख़बरें आ रही हैं कि इस्राईल ने आनन फ़ानन में अमरीकी ढाल व्यवस्था थाड स्थापित की है।

ग़ज़्ज़ा ने प्रतिरोध का रास्ता अपनाया तो किसी भी इस्राईली अधिकारी में यह हिम्मत नहीं है कि इस इलाक़े पर दोबारा क़ब्ज़ा करने की बात करे। अगर कोई अधिकारी ग़ज़्ज़ा पट्टी पर क़ब्ज़ा करने की बात करता है तो उसका विरोध ख़ुद इस्राईली अधिकारी यह कह कर करते हैं कि ग़ज्ज़ा पर क़ब्ज़ा करना आत्मघाती कार्यवाही है।

जबकि पीएलओ ने इस्राईल से शांति समझौता और सुरक्षा समन्वय स्थापित किया तो उसके नियंत्रण वाले इलाक़े पश्चिमी तट पर क़ब्ज़ा करने की केवल बात ही नहीं बल्कि विधिवत रूप से योजना तैयार की गई है और यह योजना डील आफ़ सेंचुरी का हिस्सा बताई जाती है। यहीं से साबित हो गया कि इस्राईल के मामले में वार्ता और शांति प्रक्रिया नहीं केवल हथियारों से प्रतिरोध ही कारगर रास्ता है।