जदीद लब-ओ-लहजा के शायर और फ़िल्मी नग़मा निगार निदा फ़ाज़ली ने हाल ही में एक शेअरी नशिस्त में शिरकत के दौरान बताया कि फ़िल्मी नग़मों में अब वो पहली जैसी मिठास नहीं रही। अब मूसीक़ी का शोर इतना होचुका है कि गुलूकार की आवाज़ और गाने के बोल शोर में दब जाते हैं।
कभी कभार किसी नई फ़िल्म के नग़मे पसंद आते हैं, वर्ना उन की ज़िंदगी सिर्फ फ़िल्म के चलने तक ही रहती है। फ़िल्म के सिनेमा हाल्स से निकलते ही शायक़ीन इन गानों को भी भूल जाते हैं। अब शकील बदायनी, साहिर लुधियानवी , हसरत जयपूरी, आनंद बख्शी, रजा मेह्दी अली ख़ां, जांनिसार अख़तर और कैफ़ी आज़मी जैसे शायर कहां हैं। ये तमाम शाराए क़्या रुख़स्त हुए कि फिल्मों से नग़म्गी भी रुख़स्त हो गई।
उन्होंने कहा कि इन शाराए के इलावा हिंदूस्तानी क्लासिकी संगीत पर मबनी मूसीक़ी देने वाले मूसीक़ार जैसे नौशाद , एस डी बर्मन और क़ियाम भी फ़िल्मी सनअत से दूर हो गए।