नई दिल्ली: यूरोप में कारोबार कर रही भारतीय कंपनियां निराशा के साये से बाहर निकली हैं और वे यूरोप में अपने कारोबारी संभावनाओं में फिर से उछाल देख पा रही हैं।
भारतीय कॉर्पोरेट जगत ने दुनिया के सबसे अपेक्षा रखने वाले और संगठित बाजारों में से एक, यूरोप में धीरे–धीरे अपनी संचालन क्षमताओं की स्थिति में बदलाव कर और उन्हें नए सिरे से संरेखित कर बाजी पलटी है। कई यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन में सुधार का फायदा उठाकर और इसके दम पर भारतीय कंपनियां वहां आगे बढ़ने और अपने उत्पादों के लिए एक शीर्ष जगह तैयार करने में सक्षम हुई हैं।
भारतीय कॉर्पोरेट जगत के लिए यह उत्साह बढ़ाने वाले संकेत हैं कि भारत–यूरोप के व्यापार और आर्थिक संबंधों में धीरे–धीरे गिरावट आने के बावजूद यह इलाका अब भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
सर्वे से पता चलता है कि मौजूदा आर्थिक परिस्थिति में वैसे तो भारतीय कंपनियों के लिए इस महाद्वीप में अपने विस्तार या कारोबार करने के रास्ते में तमाम प्रक्रियागत और नियामक अड़चनें आ रही हैं, लेकिन यहां किए गए निवेश पर अब भी जरूरी रिटर्न मिल जा रहा है।
भारतीय उद्यमिता अब यूरोप की सुधरी हुई आर्थिक परिस्थितियों का दोहन अपने फायदे के लिए करना चाहता है। इसकी वजह से यूरोपीय कंपनियों के साथ उनके संवाद और संयुक्त उद्यम कायम करने में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत के एसएमई (SME) सेक्टर ने भी यूरोपीय कंपनियों के साथ नए कारोबारी गठजोड़ कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने की खातिर जरूरी टेक्नोलॉजी और संचालन विशेषज्ञता हासिल करने के लिए ऐसा किया गया है। इस तरह के कौशल उन्नतीकरण और विकास से भारतीय तथा यूरोपीय उद्यमों के बीच तालमेल बढ़ता जा रहा है।
सर्वे के निष्कर्षों से यह खुलासा भी होता है कि यूरोप में धीरे–धीरे हो रहे आर्थिक सुधारों का भारतीय कंपनियों के कारोबारी हितों पर कई दिशा में गहरा असर पड़ने वाला है। इनमें शामिल हैं–उनके कारोबार के मौजूदा स्तर के बने रहने, इस इलाके में अपने पांव और मजबूत करने, संबंधित यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा लचीला नीतिगत ढांचा हासिल करने ताकि वहां कारोबार करने की प्रक्रिया आसान हो और मानव संसाधान की सुगम आवाजाही ताकि मौजूदा प्रोजेक्ट पूरा हो सकें तथा आने वाले समय में नए प्रोजेक्ट हाथ में लिए जा सकें।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच एक समान भागीदारी वाले और संतुलित एफटीए (FTA) पर दस्तखत के लिए चल रही वार्ताओं पर भारतीय उद्योग जगत की गहरी नजर है। यूरोप में अपने प्रोफेशनल्स के लिए वीसा हासिल करना और उनकी आवाजाही अब भी भारतीय कंपनियों के लिए सबसे विवादग्रस्त और चिंता का क्षेत्र बना हुआ है।
उदारीकरण के शुरुआती वर्षों में भारतीय कंपनियों का जोर निर्यात बढ़ाने, विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर समझौता करने पर था ताकि वैश्विक बाजारों में अपनी मौजूदगी दर्ज की जा सके। हाल के वर्षों में भारत का कॉर्पोरेट जगत लगातार वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी उद्यम बनाने की दिशा में आगे बढ़ा है। घरेलू मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन और बाहर निवेश करने के बारे में बनी उदार नीतियों की बदौलत विदेश में उपक्रम खड़े करने की इच्छा, वैश्विक स्तर पर पांव जमाने के लिए उत्प्रेरक साबित हुई है और इससे अधिग्रहण के रास्ते भारतीय कंपनियों के विदेशी बाजारों में प्रवेश की प्रक्रिया तेज हुई है।
समूचे 27 देशों का गुट यूरोपीय संघ भारतीय कंपनियों के लिए बहुत बड़ा ग्राहक आधार (करीब 50 करोड़ संभावित ग्राहक)पेश करता है। यूरोपीय संघ के अन्य आकर्षण में शामिल हैं– अच्छी तरह विकसित पूंजी बाजार, राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता, स्थापित और पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया आदि।