फिर मुझे दीद ए तर याद आया
दिल जिगर तिश्न ए फ़रियाद आया
दम लिया था ना क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा वक़्त ए सफ़र याद आया
सादगी हाय तमन्ना , या’नी
फिर वो नैरंगे-नज़र याद आया
ज़िन्दगी यूं भी गुज़र ही जाती
क्यूँ तेरा राह गुज़र याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है!
दश्त को देख के घर याद आया
मैने मजनूँ पे लड़कपन में “असद”
संग उठाया था कि सर याद आया
– मिर्ज़ा “असद” उल्लाह खान “ग़ालिब” (1797-1869)