फिल्मों में फ़हश के ख़िलाफ़ मुफ़ाद-ए-आम्मा की दर्ख़ास्त पर समाअत

अलाहाबाद हाइकोर्ट ने मुफ़ाद-ए-आम्मा के तहत दाख़िल करदा एक दर्ख़ास्त पर अपना फ़ैसला महफ़ूज़ रखा है जहां अदालत से ख़ाहिश की गई है कि वो सेंटर्ल फ़िल्म ऐंड संसर बोर्ड को तहलील करने और उसकी दुबारा तशकील करने का हुक्म जारी करे।

जस्टिस इमतियाज़ मुर्तज़ा और जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाधयाए पर मुश्तमिल एक डीवीझ़न बेंच ने हिंदू पर्सनल ला बोर्ड के सदर अशोक पांडे की जानिब से दाख़िल करदा इस दर्ख़ास्त की समाअत की जिस में दर्ख़ास्त गुज़ार ने इल्ज़ाम आइद किया था कि माज़ी में आई फिल्में ओमकारा और गंगा जल के इलावा अनक़रीब रीलीज़ होने वाली फ़िल्म राम लीला में फ़हश ज़बान का इस्तिमाल किया गया है जबकि हिंदू भगवानों लार्ड राम और लार्ड कृष्णा का भी मजाक उड़ाया गया है।

दर्ख़ास्त गुज़ार ने मज़ीद कहा कि ऐसे फ़िल्मी मुनाज़िर से हिंदू तबक़ा के मज़हबी जज़बात मजरूह होने के इलावा ख़ुसूसी तौर पर समाज और बच्चों पर इस के मनफ़ी असरात मुरत्तिब हुए और मुस्तक़बिल में भी मनफ़ी असरात मुरत्तिब होने के पूरे अंदेशे मौजूद हैं।

अशोक पांडे ने कहा कि इस नौईयत की फिल्मों को रीलीज़ की इजाज़त देना के मुनासिब नहीं है लिहाज़ा बोर्ड को तहलील करते हुए नया बोर्ड तशकील दिया जाये जिस में रिटायर्ड जजस को भी रुकनियत दी जाये जबकि दूसरी तरफ़ सेंटर्ल फ़िल्म ऐंड संसर बोर्ड ने मुफ़ाद-ए-आम्मा की इस दर्ख़ास्त को ताख़ीर से दाख़िल की जाने वाली दर्ख़ास्त से ताबीर करते हुए उस को यकसर मुस्तर्द कर दिया और कहा कि इस दर्ख़ास्त के तहत कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती और ये मुक़द्दमा इख़राज की मुस्तहिक़ है।

याद रहे कि हिन्दी फिल्मों के डायलॉग्स इंतिहाई फ़हश और ज़ूमानी होगए हैं जिस की हालिया मिसाल फ़िल्म ग्रांड मस्ती है। ताज्जुब की बात ये है कि ऐसी फिल्में बॉक्स ऑफ़िस पर ज़बर्दस्त कामयाबी भी हासिल कररही हैं।