कवि-गीतकार नक़्श ल्यालपुरी, रविवार को हम सब को अलविदा कह गए| नक़्श ल्यालपुरी को फिल्मजगत ने बीते सालो में पूरी तरह से भूला दिया था| उनके गाने कवित्वपूर्ण नहीं होने के बावजूद भी गुंनगुनाने के लिए याद किये जाते है|
नक़्श, जिससे नक़्शा शब्द आता है, किसी निशान या चीन को बताने के लिए प्रयोग किया जाता है| ल्यालपुर(फैसलाबाद) में जन्मे जगदीश राज, जिन्होंने लिखने के लिए “नक़्श ल्यालपुरी” के नाम का इस्तेमाल किया, हुनर होते, हुए भी मुश्किल से फ़िल्मी जगत के लोगो के दिलो में अपनी कुछ छाप छोड़ पाए|
उन्होंने अपने सफर की शुरुआत में साहिर साहब, हसरत और शैलेन्द्र जैसे लोगो के बीच कदम जमाने की कोशिश की, वंही आगे जाकर गुलज़ार और मजरूह जैसे लेखको का सामना किया, ल्यालपुरी उत्तम श्रेणी के संगीतकारों के अलबमो में दूसरे दर्जे के गानो को ही लिखने का मुकाम हासिल कर पाए| ज्यादा प्रतिस्पर्धा के चलते, उन्हें मजबूरन ‘ बी-ग्रेड’ फिल्मो और बाद में पंजाबी सिनेमा के लिए काम करना पड़ा|
इसके बावजूद की उन्होंने १४५ संगीतकारों के साथ काम किया, नक़्श ल्यालपुरी का नाम शायद ही किसी को याद आये जब मुम्बई पर छाप छोड़ने वाले गीतकारो की बात होगी| फिर भी ऐसे कुछ गाने मौजूद है जिन्हें उनके बोलो की वजह से जाना जाता है और उन पर नक़्श ल्यालपुरी की छाप दिखती है|
यह मुलाक़ात एक बहाना है – खानदान