फुक़रा की फ़ज़ीलत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी० से रिवायत है कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया फुक़रा, मुहाजिरीन क़यामत के दिन मालदारों से चालीस साल पहले जन्नत में दाख़िल होंगे। (मुस्लिम)
चालीस साल से मुराद वो अर्सा है, जो हमारी दुनिया के शब-ओ-रोज़ के एतबार से चालीस साल के बक़दर होता है और हदीस शरीफ़ के ज़ाहिरी

मफ़हूम से ये वाज़िह होता है कि इस हदीस शरीफ़ का ताल्लुक़ ख़ास तौर पर इन ही फुक़रा से है, जो मुहाजिरीन में से थे। इसी तरह मालदारों से मुराद मालदार मुहाजिरीन हैं। रही ये बात कि यहां फुक़रा और मालदार कैसा था, मुहाजिरीन की क़ैद क्यों लगाई गई है? तो इसकी हक़ीक़त दूसरी हदीस शरीफ़ से मालूम होती है।

नीज़ जन्नत में फुक़रा के पहले दाख़िल होने की वजह ये होगी कि मालदार तो हिसाब की तवालत की वजह से मैदान-ए-हश्र में रुके रहेंगे, जब कि फुक़रा हिसाब के बगै़र जन्नत में दाख़िल होकर वहां की सआदतों और नेअमतों से बहरामंद होने लगेंगे।

जहां तक इस बात का ताल्लुक़ है कि हुज़ूर स०अ०व० ने ग़रीब-ओ-नादिर मुसलमान की फ़ज़ीलत क्यों बयान फ़रमाई तो उस की वजह ये है कि आम तौर पर ग़रीब-ओ-नादार मुसलमान का दिल बहुत साफ़ होता है और इसके सबब वो हक़ को जल्द कुबूल करता है और अल्लाह तआला के अहकाम की पैरवी बहुत ज़्यादा करता है।

इसके बरख़िलाफ़ ग़नी-ओ-मालदार अफ़राद आम तौर पर बेहिसी और शिक़ावत में मुबतला हो जाते हैं, जिस की वजह से उन के अंदर सरकशी और तकब्बुर का वो माद्दा पैदा हो जाता है, जो उन्हें कुबूल हक़ और अहकाम ख़ुदावंदी की पैरवी से बाज़ रखता है। इस हक़ीक़त का अंदाज़ा उल्मा के शागिर्दों और सलेहा ओ- मशाइख़ के मुरीदों को देख कर किया जा सकता है कि इन में से जो लोग ग़रीब-ओ-नादार होते हैं, वो हक़ बात को बहुत जल्द कुबूल कर लेते हैं और जो लोग मालदार होते हैं वो हर बात में हेल-ओ-हुज्जत करते हैं।