फूलन देवी की यादें ताज़ा

उत्तर प्रदेश के ज़िला जालौन का शेख़पुर गोरबा गाँव किसी फ़र्द के लिए एक ऐसा गाँव नज़र आएगा जो ज़ात पात-ओ-तबक़ात में मुनक़सिम है और तरक़्क़ी से महरूमी-ओ-मायूसी की मुंह बोलती तस्वीर नज़र आता है, जहां क़रीबी हॉस्पिटल और हाई स्कूल भी कम से कम दो केलो मीटर दूर है। ये गाँव हलक़ा असेंबली कापी के तहत वाक़्य है, जिसको एस पी और बी एस पी की सियासत ने मज़ीद ग़रीबी-ओ-पसमांदगी में ढकेल दिया है।

इसके बावजूद ये गाँव डॉ कट्टू हसीना से सियासतदां बन जाने वाली मक़्तूल रुकन पार्लीमेंट फूलन देवी की अभी भी याद दिलाता है, जहां वो पैदा और बड़ी हुई थी। ये गाँव उसकी ऐसी शबीहा पेश करता है जो दरअसल इसके क़द से बहुत बड़ी है।

इस गाँव में दो तब्क़ात निशाद (मल्लाह) और पाल (चरवाहों) को ग़लबा हासिल है, लेकिन 10 साल क़ब्ल और गाँव से बहुत दूर नई दिल्ली में दिन धहाड़े क़त्ल के बावजूद फूलन और इसका पैग़ाम इस गाँव में आज भी ज़िंदा है और उन तबक़ात को मुत्तहिद रखा हुआ है। ये भी इत्तेफ़ाक़ है कि फूलन देवी के इस असेंबली हलक़ा में अगरचे पसमांदा तब्क़ात की अक्सरीयत है, लेकिन तमाम बड़ी सयासी जमातों कांग्रेस, एस पी, बी एस पी और बी जे पी ने आला ज़ात यानी ठाकुर तब्क़ा से ताल्लुक़ रखने वालों को अपना उम्मीदवार नामज़द किया है।

इन उम्मीदवारों में उमा कान्त चौहान, संजय सिंह बहूदार , विशनपाल सिंह और सिवा तंत्रा देव सिंह शामिल हैं। हलक़ा असेंबली कालपी में वाक़्य ये वही गाँव है, जहां माज़ी की डाकू हसीना फूलन ने मार्च 1981 में ठाकुर ख़ानदान के 22 अफ़राद को मुबय्यना तौर पर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था।

ठाकुर ख़ानदानों के इजतिमाई क़त्ल के इस वाक़िया को बदनाम-ए-ज़माना बहीमया क़त्ल-ए-आम के नाम से याद किया जाता है, जो फूलन देवी ने मुबय्यना तौर पर ठाकुरों की जानिब से अपनी इजतिमाई इस्मत रेज़ि का इंतेक़ाम लेने के लिए किया था।

इस गाँव की एक औरत विद्या देवी ने फूलन के मुसलसल दौरों और ग़रीबों में ब्लै‍केटस और कपड़ों की तक़्सीम के वाक़ियात को याद दिलाते हुए कहा कि फूलन देवी अगर दूसरी मर्तबा पार्लीमेंट के लिए मुंतख़ब हो जाने के बाद क़त्ल ना की जाती तो वो इस इलाक़ा की सोनीया गांधी बन जाती थी।