फूलबन

अंग्रेज़ी दानिश्वर इशपन्गलर कहता है:जब अक़वाम रुहानी क़ुव्वत और अहम तहज़ीबी इक़दार की इशाअत के फ़रीज़े से बेनयाज़ होकर महज़ माद्दी जरूरतों और आसाइशों के लिए वक़्फ़ होजाएं तो इन में दूसरों को मुतास्सिर करने की सलाहियत कम हो जाती है और वो दाख़िली अमराज़ का शिकार होकर ज़ईफ़ हो जाती हैं। इन सुतूर की रोशनी में ये पता चलता है कि हमारी सलामती का दारो-मदार तहज़ीबी इक़दार की पासदारी ही में मुज़म्मिर है जिस के फ़रोग़ और वुसअत के लिए वसीअ पैमाने पर मुनज़्ज़म लायेहा-ए-अमल तरतीब दिया जाये जिस में अव्वलीन तर्जीह मुख़्तलिफ़ मौज़ूआत पर तसानीफ़ की इशाअत हो।

अख़लाक़ी और फ़िक्री इन्हितात आज का सब से बड़ा मसला है जिसके रोकने के लिए ईमानियात के साथ शेअर-ओ-अदब की हक़ीक़ी नशो-नुमा उतनी ही ज़रूरी है जितना कि लिबास और ग़िज़ा चुनांचे ऐसी फ़िक्र का नतीजा है कि अंजुमन इत्तिहाद तलबाए क़दीम उर्दू आर्टस इवनिंग कॉलिज हैदराबाद का तर्जुमान फूलबन (सेमाही) का दुबारा अहया अक्तूबर 2013 में हुआ और नए साल के आग़ाज़ के साथ ही जनवरी 2014 ता मार्च 2014 -दूसरा शुमारा पेशे नज़र है जिस के मुशीर जनाब मुहम्मद अबदुर्रहीम ख़ां मोतमिद अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू आंध्रा प्रदेश-ओ-साबिक़ प्रिंसिपल आर्टस कॉलिज हैं।

जबकि मुहम्मद मुईन अख़तर मुदीर हैं। गुज़श्ता की तरह इस बार भी इस के दो अबवाब हैं। अव्वल बाब में पहली ख़ुशबू के तहत ईदारिया हमद-ओ-नाअत, नज़्में, ग़ज़लें, फ़िकाहिया और मज़ामीन शामिल हैं और दूसरा बाब डाक्टर सय्यद मुहियुद्दीन कादरी ज़ोर के लिए मुख़तस कर दिया गया है। डाक्टर ज़ोर की पुरकशिश-ओ-तिलस्माती शख़्सियत पर मशाहरीन इलम-ओ-अदब की पुरमग़ज़ तहरीरों ने सोने पे सुहागा का काम कर डाला है।

ईदारिया में काम कम बातें ज़्यादा के बजाय काम ज़्यादा बातें कम की जानिब तवज्जा मबज़ूल करवाई गई है और उर्दू वालों की मादरी ज़बान से दूरी पर इज़हार तफ़क्कुर किया गया है जो दावत-ए-ग़ौर-ओ-फ़िक्र देता है। हुकूमत के वादों पर एतिमाद करने के बजाय उर्दू के फ़रोग़ इर्तिक़ा और बक़ा के लिए उर्दू वालों में शऊर बेदार करने की काविश की गई है। शाग़िल अदीब अगरचेके हयात नहीं हैं मगर उनकी हम्द और नाअत शामिले किताब है, गोया कि वो लफ़्ज़ों में सांस लेते दिखाई देते हैं।

दक्कन के माया नाज़ शायर रऊफ ख़ैर की शगुफ़्ता तहरीर इक़बाल और हम तशनगान इलम-ओ-फ़न को सैराब करती है। मज़्मूननिगार ने इबतिदाई सुतूर में क़ारी को चौंकाया है, ये कह कर कि इक़बाल से पहले भी कोई ख़ुदाए सुख़न नहीं और इक़बाल के बाद शायरी का दावा करना नबुव्वत का दावा करने के बराबर है, ज़्यादा से ज़्यादा औलियाए ग़ज़ल और औलियाए नज़्म हो सकते हैं। ये एक सच्चाई भी है कि इक़बाल के कलाम का असर बहुत गहरा और देरपा है और जो इन्फ़िरादियत इक़बाल के हिस्से में आई, वो इन्फ़िरादियत किसी और को नसीब ना हो सकी।
मुहतरम मुदीर ने सिर्फ़ ईदारिया ही पर इकतिफ़ा-ए-नहीं किया बल्कि अपनी एक तहरीर को भी किताब में शामिल कर लिया है जो समाजी बुराईयों का अहाता करती है, काबुल मुताला है।

मुहम्मद मुनीरुद्दीन मुआविन मुदीर फूलबन ने भी उर्दू की ज़बूँहाली पर आँसू बहाए हैं और इस के रोशन मुस्तक़बिल के लिए अपने बेलाग आरा को अपने मज़मून का हिस्सा बनाया है। डाक्टर मीम काफ सलीम को बात से बात पैदा करने का हुनर ख़ूब आता है, इन का इन्शाईया जानवर मेयर-ओ-शहर के मौजूदा दौर के इंसानों पर भरपूर चोट है।

हिस्सा शायरी में डंडा और बंबू ने अपना कमाल दिखाया है। डाक्टर सय्यद मुहियुद्दीन कादरी ज़ोर माहिर दकनियात-ओ-बानी इदारा-ए-अदबीयात उर्दू पर जय्यद अदीबों और नाक़िदीन की तहरीरें दिल को छू लेती हैं और शख़्सियत मुजस्सम होकर निगाहों के सामने आ ठहरती है। बिलख़सूस मुमताज़ दानिश्वर-ओ-मुहक़्क़िक़ जनाब गोपी चंद नारंग के तास्सुरात और सय्यदा जाफ़र की ताबिंदा तहरीर भुलाई ना जाएगी।

फूलबन 25 रुपयो और सालाना 100 रुपये में हसब-ए-ज़ेल पते पर दस्तयाब है।
उर्दू आर्टस इवनिंग कॉलिज, हिमायत नगर, हैदराबाद