लखनऊ, 05 मार्च: ‘‘जब तक बदउनवान, सत्ता के गुलाम, जातिवादी और नपुंसक ईमानदार, बदतमीज आफीसर सबसे उपर रहेंगे, उनके हाथों में लीडरशिप रहेगी, उन्हें एज़ाज़ात दिया जाता रहेगा, तब तक हालात में कोई सुधार होने वाला नहीं है।
हम अपनी मजबूरी के लिए खुद जिम्मेदार हैं। एक हक़ीकत और, हक़ीकत जो हमने आईपीएस और पीपीएस आफीसरों की ज्वाइंट मीटिंग में गौर के लिए रखा था कि ‘कोई ऐसा आईपीएस आफीसरनहीं जिसे उम्दा, बेहतरीन या सराहनीय खिदमात के लिए राष्ट्रपति पदक से नवाज़ा गया हो? और जब प्रदेश पुलिस की कियादत इन्हीं के हाथों में है तो फिर महकमा की हालत कैसी हो रही है?’ यह सवाल है।’’
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर यह तब्सिरा किसी और की नहीं, बल्कि पीपीएस एसोसिएशन के सदर जुगुल किशोर तिवारी की है। कुंडा में शहीद जांबाज पुलिस उपाधीक्षक को खिराज ए अक़ीदत… टाइटील ( Title) से यह तब्सिरा इलाहाबाद में एसोसिएशन की बैठक के बाद पोस्ट की गई।
तिवारी कहते हैं कि यह तब्सिरा अकेले उनकी नहीं, बैठक में मौजूद मेम्बरो की आमराय है। मेम्बर अब चुप बैठने को तैयार नहीं हैं। अभी तक सारे वसाईल और हुकूकों पर एक तबका का हक है। डिसीप्लीन के नाम पर कोई कुछ नहीं बोलता। मगर अब नियमों के दायरे में जिम्मेदारी के मुताबिक हुकूक को लेकर बात होगी।
हर जिले की बैठक में यह बात तय हो गई है।
वे कहते हैं कि हम खुद का भी तशखीस करेंगे। अपनी कमियां दूर करेंगे लेकिन नाइंसाफी नहीं सहेंगे। एएसपी स्तर के आफीसर से थानेदार की तैनाती तक में राय नहीं ली जाती, कोई मामला होता है तो जिम्मेदारी तय करने का रास्ता ढूंढा जाता है।
सूबे के सीओ वसाएल (Resources) की कमी में जी रहे हैं। किसी भी जिले के एसपी और डिप्टी एसपी के घर और दफतर का हाल देखा जा सकता है।
तिवारी ने कहा कि यह फिक्र करने का मौजू है कि सूबे का शायद ही कोई आईपीएस हो, जिसे मख्सूस एहतेराम से न नवाजा गया हो। जब इतने शानदार तर्ज़ए अमल वाले हमारे सेनापति हैं तो फिर फोर्स की यह हालत क्यों है? एसोसिएशन ने वज़ीर ए आला से कैडर (Cadre) की परेशानियो को लेकर मिलने के लिए वक्त मांगा है। वक्त मिलते ही पूरी हालात उनके सामने रखी जाएगी।
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पीपीएस एसोसिएशन के सदर जुगुल किशोर तिवारी ने सोशल नेटवर्किंग साइट पर एसोसिएशन की राय क्या पोस्ट की, इस पर रद्दे अमल की झड़ी लग गई। कुछ तब्सिरे –
‘जब तक बेईमान आफीसरो और भ्रष्ट लीडरो का गठजोड़ रहेगा, तब तक ईमानदारों का यही हश्र होगा।’
‘बेहद अफसोस, पीपीएस एसोसिएशन के लिए संगीन चुनौती।’
‘यूपी में आईएएस और आईपीएस लॉबी आवाम की भलाई में काम करने के बजाय हुकूमत का एजेंट बनकर काम करती है, चाहे जिसकी हुकूमत हो।’ -� अविनाश दीक्षित
‘तंज़ीम अब भी कुछ नहीं कर पाया तो तंज़ीम को लानत है।’
‘यह एक सही वक्त है। जब हर पुलिस आफीसर बदवुनवान (भ्रष्ट/Corrupt) और कामकाजी निज़ाम में अपनी मौजूदगी की अहमियत समझें। बजाय इसके कि उनकी जी हुजूरी।..बदउनवान निज़ाम के हुक्म पर अमल के बजाय अपना स्टेटस और आइनी जिम्मेदारी समझे।’
– आलोक श्रीवास्तव
‘जब एक पुलिस आफीसर के साथ ऐसा हो रहा है तो आम आदमी की तो…जाने दो..।’ – अतुल तिवारी
‘सर! ये पुलिस मेडल सभी आफीसरों को मिलना यही ज़ाहिर करता है कि मानकों ( Standards) का जबर्दस्त गलत इस्तेमाल होता है। और शायद इसी वजह से पुलिस का हौसला गिरता है। ईमानदार आफीसर आज हाशिए पर हैं। – मयंक अवस्थी
‘सर! हम किसी के ज़िंदगी के वैल्यू को समझें। पैसे से क्यों तौलकर देखते हैं? यह मुनासिब नहीं है।’ – निशांत पाठक
‘राष्ट्रपति पदक चापलूसों को मिलता है, बहादुरों को नहीं।’ – सतीश द्विवेदी
बशुक्रिया: अमर उजाला