फोटो फीचर: लारबांग मस्जिद को देखें, जो है घाना की सबसे पुरानी मस्जिद

एडम केल्विक
हम कुछ समय के लिए खाली थे तो सोचा लारबांग मस्जिद का दौरा किया जाए। यह घाना की सबसे पुरानी मस्जिद और पश्चिम अफ्रीका के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। यह 1400वीं सदी ईस्वी में बना था। यह एकदम कमाल की जगह है!

larabanga-mosque-ilmfeed-2मस्जिद में फोटोग्राफी की इजाजत पहले नहीं मिला। जब हमने बताया कि हम मस्जिद के बारे में लोगों को बताना चाहते हैं तो मस्जिद के इमाम इसके लिए मान गएं। संभवतः यह मस्जिद की पहली आधिकारिक तस्वीरें हैं।
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लारबांग मस्जिद घाना की सबसे पूरानी मस्जिद है। इसे 1400 ई. में इब्राहिम अयूबा अल-अंसारी ने बनवाया था। बताया जाता है कि उन्हें मदिना-मुनव्वरा के शेख ने यहां भेजा था। मस्जिद में घुसने का एक छोटा-सा दरवाजा है। मस्जिद का नीचे का हिस्सा जो काले रंगों से पूता है वह मस्जिद का मूल नींव है।

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लारबांग काफी गर्म इलाका है। इसके बावजूद मस्जिद भीतर से काफी ठंड है। इसका मूल वजह यह है कि ये मिट्टी का बना है। छत को सहारा देते इन काले खम्बों को पास के जंगलों से लाया गया था। यह लकड़ी काफी मजबूत है। इस पर ठोकने से लोहे की तरह आवाज आती है। यह नमाजियों की तरह है। मस्जिद पांचों वक़्त नमाजियों से भरा रहता है। जुमें के रोज यह सैकड़ों मर्द और औरतों से भरा रहता है। बाहर भी सैकड़ों लोगों के नमाज पढ़ने का इंतेजाम किया जाता है।

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भीतर एक पेड़ है। कहा जाता है कि इसे मस्जिद के संस्थापक इब्राहिम अयूबा अल-अंसारी ने लगाया था। स्थानीय लोग कहते हैं कि अयूबा अल-अंसारी बानो अल-नज्जर के खानदान से थें, जिनका सिजरा पैगंबर मुहम्मद ﷺ की मां से था। 500 साल पुराने इस पेड़ का फल और पत्तियों को यहां के विभिन्न जनजातियों के बीच बांटा जाता है। इनका मानना है कि इसके साझा करने से स्थानीय लोगों के बीच शांति, सद्भाव और भाईचारा बढ़ता है।

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सच कहूं तो मजिस्द के अंदर बिताया गया एक-एक लम्हा मेरे लिए बेहद यादगार है। यहां जो कुछ मैंने महसूस किया वह शब्दों में बयान नहीं कर सकता। इसने मुझे मदीना-मुनव्वरा में होने जैसा एहसास दिलाया। हर साल बरसात के मौसम के बाद, स्थानीय निवासी एक साथ आते हैं और मस्जिद को नए मिट्टी से नवीनीकृत करते है और रंगते हैं।

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मस्जिद में लकड़ी के लगे सांचे इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि इसका निर्माण किस तरह से हुआ है। हम लरबंगा मस्जिद के इमाम से ओसमान सुलैमान से मिले जो पांचों वक्त के नामाज की इमामत करते हैं। हम उनके हो भाईयों से मिले और उन्होंने एक तस्वीर दिखाई तो उनके हाजी मरहूम पिता की है। वे इस इलाके के इमाम प्रमूख थें। अल्लाह उन पर रहम करे।

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यह छोटा कमरा मेहराब और मस्जिद के ऊपरी छत पर बना है। यहां मस्जिद संस्थापक इब्राहिम अयूबा अल-अंसारी क़ुर’आन की तिलावत और इबादत करते थे।

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(एडम केल्विक एक इस्लामिक स्कॉलर हैं और लिवरपूल में रहते हैं। ये अक्सर इस्लामी विरासत की खोज में दुनिया भर में भ्रमण करते हैं। सार्वजनिक तौर पर ये चैरिटी कार्यों और विचार संगोठियों में भाग लेते हैं।)