हिंदुस्तान ने आज अपने पड़ोसी बंगलादेश की ज़बर्दस्त तारीफ की कि किस तरह बंगलादेश से हिंदुस्तान की सेक्योरिटी से मुताल्लिक़ तशवीश को छिपा कर रखते हुए उसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाई जो यक़ीनन एक नाक़ाबिल फ़रामोश अमल है।
मर्कज़ी वज़ीर-ए-दाख़िला सुशील कुमार शिंदे ने बॉर्डर पोस्ट पर मुशतर्का रेटरीट तक़ारीब से ख़िताब करते हुए कहा कि हिंदुस्तानी शोरिश पसंदों के साथ हुकूमत बंगलादेश जिस तरह निमट रही है या पहले उन से निमटा है, वो यक़ीनन क़ाबिल-ए-सिताइश बात है क्योंकि हिंदुस्तान ने ऐसी शोरिश पसंदी से मुताल्लिक़ पर लगी हुई सेक्योरिटी पर अपनी तशवीश का इज़हार किया था जिस का बंगलादेश ने बरवक़्त पूरा कर दिया लिहाज़ा अब बंगलादेश को भी कोई तशवीश लाहक़ हो तो ये हिंदुस्तान के लिए काबिल फ़ख़र कारनामा होगा कि वो उस की इन तशवीश को दूर करदे।
शिंदे ने ख़ुसूसी तौर पर हुकूमत बंगलादेश मुजरिमाना सरगर्मियों में बाहमी तौर पर क़ानूनी तआवुन का इतलाक़, सज़ा याफ्ता क़ैदियों का तबादला का मुआहिदा और मुनज़्ज़म जराइम और मुनश्शियात की स्माग्लिंग के मुआमलात से हुकूमत ने जिस तरह निमटा है, वो हालिया दिनों में किसी भी मुल्क में देखने में नहीं आया।
बंगलादेश को लोग एक छोटा और ग़रीब मुल्क कहते हैं लेकिन अपनी बरवक़्त जुर्अत मंदाना कार्यवाईयों से उन सब लोगों को सबक़ दिया है कि जो मुल्क छोटा होता है, ज़रूरी नहीं कि इस के कारनामे भी छोटे हों। शिंदे ने उम्मीद ज़ाहिर की कि मुस्तक़बिल में भी दोनों ममालिक एक दूसरे से हर शोबा में तआवुन का सिलसिला जारी रखें।
अगर दोनों ममालिक के ताल्लुक़ात ख़ुशगवार होंगे तो दोनों ममालिक के अवाम को एक दूसरे के साथ काम करने के मौक़े मयस्सर होंगे। यहां इस बात का तज़किरा भी ज़रूरी है कि जनवरी 2010 में वज़ीर-ए-आज़म बंगलादेश शेख़ हसीना वाजिद के दौरा-ए-हिंद से भी दोनों ममालिक के ताल्लुक़ात में एक नई पेशरफ़त हुई जबकि सितंबर 2011 में वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने भी बंगलादेश का दौरा किया था।