बगैर मेहनत के जीना मुहाल , ख़ातून लोहार अशर्फ़ बेगम का ख़्याल

अल्लाह ताला ने इंसान को अक़ल सलीम अता करते हुए अपनी सारी मख़लूक़(जानदार) में मुमताज़-ओ-आला क्या इस ने अपने रहम-ओ-करम से इंसान को बेपनाह सलाहियतों से नवाज़ा । उसे मुख़्तलिफ़ उलूम-ओ-फ़नून में महारत अता करते हुए सारी चीज़ें इस के ताबे करदीं । क़ारईन आप ने अब तक शहर के मज़ाफ़ाती इलाक़ों के शुरू होने पहले फुटपाथों पर आरिज़ी डेरे डाले हुए लोहारों को ज़रूर देखा होगा लेकिन लोहारों के इन क़बाइल में कोई मुस्लमान नज़र नहीं आएगा ।

शहर में भी कई लोहार काम करते दिखाई देंगे । ताहम इन में भी कोई बुर्क़ापोश ख़ातून अर बिलौर Air blower चलाते हुए दिखाई नहीं देगी । हाँ आप अंसारी रोड दानम अम्मां DAnamma की झोंपड़ी हसन नगर के फुटपाथ पर मुस्लिम ख़ातून लोहार को देख सकेंगे । 65 साला अशर्फ़ बेगम बड़ी ही रोब-ओ-दबदबा से फुटपाथ पर भट्टी चला रही हैं ।

दानमा की झोंपड़ी बस स्टप के रूबरू फुटपाथ पर एक प्लास्टिक शेड के नीचे अशर्फ़ बेगम और उन के शौहर 70 साला शेख वली काम करते हैं दो माह से शेख वली फ़ालिज के हमला के बाद से बिस्तर पर हैं ।

अब ये सख़्त काम अशर्फ़ बेगम ही देख रही हैं । मुकम्मल हिजाब में रहने वाली अशर्फ़ बेगम के मुताबिक़ ज़्यादा तर उन के पास सैंटरिंग के औज़ार बनाने उन्हें तेज़ करने छनीयां बनाने कुल्हाड़ियों को तेज़ धार बनाने फ़ौलादी सलाखों को हसब ज़रूरत मोड़ने का काम होता है और दूर दूर से लोग यहां आते हैं । अशर्फ़ बेगम अपने शौहर के बीमार होने के बाद से अपनी निगरानी में काम चला रही हैं ।

उन्हों ने दीगर दो लोहारों को काम पर रखा है और उन्हें यौमिया देढ़ देढ़ सौ रुपये उजरत देती हैं । दो लोहार काम करते हैं और अशर्फ़ बेगम बिलौर ( चर्ख़ा चलाती हैं ) भड़कती आग और शदीद तपिश के करीब बैठते हुए इस ख़ातून को कभी परेशानी नहीं हुई ।

एक सवाल के जवाब में अशर्फ़ बेगम ने बताया कि ज़िंदगी चलाने परेशानियां-ओ-मुश्किलात तो बर्दाश्त करनी पड़ती है । बाअज़ मर्तबा तो भट्टी चलाते एसा लगता है कि सारा वजूद भी इस भट्टी में जल रहा है ।

लेकिन मेहनत का जज़बा आग की तपिश को सर्द और दर्जा हरारत को भी कम कर देता है । उन्हों ने मज़ीद बताया कि गर्मी के मारे लोगों के जिस्मों से पसीना बहने लगता है लेकिन इन का हाल ये है कि आग के करीब बैठते बैठते पसीना सूख जाता है । अगरचे अशर्फ़ बेगम सख़्त मेहनत के बाद दो तीन सौ रुपये कमा लीती हैं लेकिन उन पर बीमार शौहर और चार बच्चों की ज़िम्मेदारी है ।

उन्हें तीन लड़कियां और एक बेटा है । बड़ी लड़की 19 साल की है । दूसरी 17 और तीसरी 12 साल की है जब कि 8 साला लड़का स्कूल जाता है और स्कूल के बाद ये लड़का अपनी माँ का हाथ बटाता है । फुटपाथ पर कई बरसों से काम करने के बारे में अशर्फ़ बेगम ने बताया कि ख़ानदान के कई लोगों ने बारहा कहा है कि तुम एक मुस्लमान औरत हो कर फुटपाथ पर काम करती हो ये अच्छी बात नहीं । जिस पर वो यही जवाब देती हैं कि मुस्लमान हो कर भीक माँगना सूद पर रक़म हासिल करना लोगों के सामने हाथ फैलाना और दूसरों का माल हथिया लेना क्या ये अच्छा है

? उन के इस जवाब में हक़ीक़त पसंदाना सवाल पाकर लोग चुप होजाते हैं । अशर्फ़ बेगम के बमूजिब(के मोताबिक) अब उन के शौहर मफ़लूज होचुके हैं । घर की सारी ज़िम्मेदारी उन पर ऑन पड़ी है रोज़ कमाना और रोज़ खाने वाला मुआमला है ।

लोहे को नरम करने की सलाहियत रखने वाली ये बाइज़्ज़त बाअज़म और हौसलामंद ख़ातून इतनी सख़्त मेहनत के बाद घर जाकर बच्चों के लिये पकवान और दीगर कामों में मसरूफ़ होजाती है । इस सवाल पर कि आप इतने सख़्त काम के बाद थक नहीं जातीं ? अशर्फ़ बेगम ने बताया कि थकान किस को नहीं होती लेकिन मजबूरी है काम तो करना ही पड़ेगा वर्ना बगैर मेहनत के जीना मुहाल है ।

बेशक अशर्फ़ बेगम ने अपने इस जवाब के ज़रीया एक मक़ूला सौ सुनार की एक लोहार की को सच्च साबित कर दिखाया ।।