बच्चों को बताया जाए कि इस्लाम ख़तरनाक मज़हब नहीं है : अनीता नायर

कोलकाता: मशहूर उपन्यासकार अनीता नायर ने  कहा कि जो बच्चों के ये बताने के लिए इस्लाम मज़हब एक खतरनाक मज़हब नहीं है, उनके सामने क़ुरान की कहानियां पेश की जाएँ |

हाल ही में लांच हुई अपनी किताब ‘मौजज़ा और बेबी जान : स्टोरीज़ फ्रॉम क़ुरान’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लाम के बारे में जितनी नेगेटिव बातें फैली हुई हैं उन सबको ख़त्म करने की ज़रुरत है |

नायर ने एपीजे कोलकाता लिटरेरी फेस्ट के मौके पर आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि लोगों को इस सोच से बाहर निकलना होगा कि इस्लाम एक खतरनाक मज़हब है | उन्होंने कहा कि हमें बच्चों को भी ये बताना होगा कि हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म की तरह इस्लाम भी एक धर्म है |

उन्होंने कहा कि मैं बहुत से मुस्लिम लेखकों को जानती हूँ जो इस बारे में काम करना चाहते हैं | लेकिन वो सिर्फ़ इसलिए हिचकिचाते हैं कि उनके इस काम को एक प्रोपेगेंडे(इस्लाम का प्रचार) की तरह लिए जाएगा| लेकिन एक मैं एक हिंदु हूँ इसलिए मेरे बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है | उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ़ लोगों को इस धर्म के बारे में बताना चाहती हूँ |

“बेटर मैन” और “लेडीज़ कूप” की लेखक ने कुरान पर लेखन के अभाव की ओर तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि कुरान के बारे में कुछ भी लिखा हुआ नहीं है |  आप बाइबल कहानियों पर नजर डालें, आप हिंदू पौराणिक कथाओं पर नजर डालें और जातक कथाओं को देखो, सब कुछ वहाँ मौजूद है लेकिन कुरान पर कुछ भी नहीं है | उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में जिस तरह से आतंकवादी, क़ुरान को अपने लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ये बहुत ज़रूरी है कि इसके बारे में लोगों को बताया जाए | लेकिन इस बारे में कुछ नहीं बताया जा रहा है और ये बहुत दुःख की बात है |

केरल साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित नायर ने कहा कि कुरान पर उनकी रिसर्च (इदरीस : कीपर ऑफ़ द लाइट )से  पता चलता है कि यह खूबसूरत कहानियों का खजाना है| उन्होंने कहा कि क़ुरान को पढ़ने से पता चलता है कि ये एक खूबसूरत कहानियों कि व्याख्या है | जो यह बताती है कि हमें सही तरीक़े से कैसे जीना है | इसमें कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि तुम हिंसक बनो | लेकिन इसके असल मक़सद को ग़लत तरीक़े से पेश किया जा रहा है |

वेस्ट बंगाल में स्कूली किताबों को सेक्युलराइज़ करने के विवाद पर नायर ने कहा कि मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकती हूँ | क्यूंकि मौजूदा दौर पूरी तरह सेक्युलर नहीं है | ऐसे में हम अपने बच्चों को कहाँ तक बचा सकते हैं?