नई दिल्ली, 02 मार्च: रेल बजट के बाद जब आम बजट आया तो अवाम को मुतवातिर फिर कई झटकों से दो-चार होना पड़ा। अब सिगरेट नोश या तो सिगरेट नोशी तर्क करदें या सिगरेटों की तादाद कम करदें। सेल फोन्स इस्तिमाल करने वाले अगर हाई फ़ाई हैंड सैट्स से गुरेज़ करें तो बेहतर होगा। हर बजट के बाद अवाम का एक बड़ा तबक़ा कोई ना कोई अज़म ज़रूर करता है जिस में कुछ चीज़ों आदतों को तर कर देने का अज़म किया जाता है और कुछ चीज़ों के इस्तिमाल की मिक़दार, तादाद घटा दी जाती है।
रेल बजट में यूं तो मुसाफ़िर किरायों में इज़ाफ़ा नहीं किया गया, लेकिन रिज़र्वेशन चार्जस में इज़ाफ़ा करते हुए दरपर्दा मुसाफ़िरीन की जेब पर ज़रूर डाका डाला गया है। अवाम का यही कहना है कि बजट कभी भी अवाम का दोस्त नहीं हो सकता। सरमाया दारों को अब इस बात का अफ़सोस है कि वो सरमायादार क्यों हैं ? क्योंकि उन्हें अब सरमायादार होने का भी टैक्स अदा करना पड़ेगा। बजट पर चाहे जितने भी लेक्चर दिए जाएं उन से अवाम के दुखों का ज़ाला नहीं किया जा सकता।