बजट में सरकार ने नहीं बढ़ाया मदरसा शिक्षा योजना का बजट

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल लाखों करोड़ का बजट पेश किया और देश के हर वर्ग को कुछ न कुछ देने की कोशिश की और जेटली ने मध्यवर्ग को टैक्स में राहत दी, रक्षा का बजट बढ़ाया, और एससी एसटी दलितों के बजट में बड़ा इजाफा किया लेकिन गरीब और पिछड़े होने के बावजूद मुस्लिम समुदाय एक बार फिर से केंद्र सरकार के बजट में अंजर अंदाज़ होता दिखाई दिया.

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वित्त मंत्री ने समाज के कमजोर वर्ग यानी एससी, एसटी और दलितों के लिए बजट में 35 फीसदी वृद्धि और उनका बजट 38000 करोड़ से बढ़ाकर 52000 करोड़ कर दिया. लेकिन उनकी नज़र देश की आबादी का बारह फीसदी से अधिक हिस्सा मुसलमान और उनके साथ अल्पसंख्यकों में शामिल सिख, जैन और बौद्धों को कुछ खास नहीं मिला.

इन वर्गों के कल्याण के लिए बनाई गई केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के बजट में निराशाजनक 390 करोड़ की वृद्धि की गई और मंत्रालय का बजट 3827 करोड़ से बढ़ाकर 4195 करोड़ कर दिया गया और अगर अनुपात में वृद्धि को देखा जाए तो केवल 9-10 फीसदी का ही वृद्धि अल्पसंख्यक मामलों के बजट में हुआ है .

मंत्री जी का ध्यान मुसलमानों की शिक्षा पर भी ठीक नहीं पड़ी यही कारण है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कुल बजट में जहां वृद्धि 6 हजार करोड़ से अधिक राशि का हुआ है.

वहीं मदरसों में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चों को गुणात्मक शिक्षा की योजना जो अम्ब्रेला स्कीम फॉर डेवलपमेंट माइनोरिटीज़ के तहत चल रही है और इस योजना के तहत मदरसों में गुणवत्ता की शिक्षा मुहैया कराई जाती है, इस एस पी क्यू ई एम् नामक योजना का बजट बढ़ाए जाने की उम्मीद थी क्योंकि पिछले साल यानी 2015-16 के बजट में इस योजना का बजट 295 करोड़ से घटाकर 120 करोड़ रुपये कर दिया गया था, जिस कि वजह से योजना के तहत चलने वाले मदरसों के शिक्षकों को दो सालों से वेतन नहीं मिल पाई है.

जनतर मंतर पर वेतन को लेकर विरोध भी हुए हैं लेकिन फिर भी आश्चर्यजनक रूप से बजट 120 करोड़ से नहीं बढ़ाया गया है और अगले वित्त वर्ष के लिए 120 करोड़ रुपये बजट रखा गया है. जिससे इस योजना के तहत चलने वाले मदरसों का हाल ख़राब होना तय है।