पस आप अपना चेहरा फेर लीजिए उस (बदनसीब) से, जो हमारे जिकर से दुर रहता है और नहीं ख़ाहिश रखता मगर दुनयवी ज़िंदगी की। (सूरा नजम।२९)
आयत में ज़िक्र से मुराद क़ुरान मजीद भी हो सकता है, हजुर स.व. के मवाइज़ हसना(अछ्छे ब्यानात) और नसाइह जलीला(किमती नसीहतें) भी और मुतलक़ ज़िक्र इलाहि भी।
मतलब ये है कि जिन के सामने हमारी किताब की आयात तिलावत की(पढी) जाती हैं, लेकिन वो उन की तरफ़ इलतिफ़ात नहीं करते(माइल नहि होते)। मेरा रसूल उन्हें वाज़-ओ-नसीहत करता है तो इस के सुनने के लिए भी वो तैयार नहीं होते, या जहां मेरे
बंदे मेरे ज़िक्र की शम्मा रोशन किए बैठे होते हैं, वहां से भी वो दुर भागते हैं। ओर दुनयवी ज़िंदगी की लज़्ज़तों और राहतों में वो यूं खोए
हुए हैं कि आक़िबत(अंजाम) के बारे में उन्हों ने ग़ौर फ़िक्र करने की ज़हमत कभी गवारा नहीं की(कभी नहि सौचा)।
रात दिन दौलत समेटने में लगे रहते हैं। ए हबीब! इस क़ुमाश के लोग हरगिज़ इस लायक़ नहीं कि आप उन के लिए सौच में पड जाएं,
उन्हें अपने हाल पर छोड़ दीजिए, इन्हें नादानी कि वादीयों में भट्कने दीजिए। अगरजिल्ल्त के कामों में छलांग लगाने का ये लोग इरादा करचुके हैं तो उन्हें मत रोकिए। जब अपने करतूतों का मजा चखेंगे तो ख़ुदबख़ुद उन की आँखें खुल जाएंगी।