बरोनई में इस्लामी क़ानून के आजिलाना नेफ़ाज़ पर ज़ोर

जकार्ता । 12 अक्टूबर । ( एजैंसीज़) हम किस चीज़ का इंतिज़ार कररहे हैं ? सुलतान हाजी हुस्न अलबोलक़ीह मुइज़ उद्दीन विदा लल्ला ने ये सवाल बरोनई इस्लामी मज़हबी कौंसल , नफ़ाज़े शरीयत के ओहदेदारों और अटार्नी जनरल के साथ एक मीटिंग के दौरान इस्लामी फ़ौजदारी क़ानून लागू करने के ताल्लुक़ से ग़ौर-ओ-ख़ौज़ के दौरान क्या । इस मीटिंग में सुलतान के साथ प्रिंस हाजी अलमहतदी बिल्लाह भी शरीक थे । सुलतान ने हुक्काम पर ज़ोर दिया कि इस क़ानून को नाफ़िज़ करने में ताख़ीर ना की जाय क्योंकि बरोनई के पास अब तमाम तर वसाइल मौजूद हैं। उन्हों ने कहाकि हमारे पास शरीयत के लिए मुख़तस कोर्ट की बिल्डिंग दस्तयाब है, हमारे पास दानिश्वर और माहिरीन भी हैं और हमारा मुल़्क आज़ाद है , चुनांचे हमें मज़ीद किस चीज़ का इंतिज़ार है ? उन्हों ने मज़ीद कहा कि शरीयत के जजस भी मौजूद हैं जिन की सरबराही निहायत क़ाबिल चीफ़ जज के ज़िम्मा है । सुलतान ने निशानदेही की कि उन्हों ने शरई अदालतें क़ायम करने का मसला आला तरीन सतह पर उठाया है और ये मसाई 1996 में सुलतान की 50 वीं सालगिरा तक़ारीब से शुरू होगई थीं कि मुनासिब-ए-वक़्त पर इस्लामी फ़ौजदारी क़ानून मुतआरिफ़ किया जाएगा। उन्हों ने कहा कि तब इस मंसूबा पर अमल आवरी केलिए मुनासिब-ए-वक़्त का इंतिज़ार किया जा रहा था । सुलतान ने कहा कि तब से काफ़ी वक़्त गुज़र चुका है और अब शरई क़ानून लागू करने केलिए मज़ीद ताख़ीर हरगिज़ मुनासिब नहीं रहेगी । उन्हों ने कहा कि 15 बरस गुज़र चुके हैं और हनूज़ बाअज़ गोशे कह रहे हैं कि हम तैय्यार नहीं है , हम हनूज़ इस क़ानून पर अमल आवरी से क़ासिर हैं और इस को लागू करने केलिए हनूज़ बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है जिस केलिए मज़ीद 5 या 8 साल दरकार होंगी। सुलतान ने इस्तिफ़सार किया कि मज़ीद 5 ता 8 साल बाद बाअज़ दीगर गोशे उभर आयेंगे जो फ़ौरी बहाना पेश करेंगे कि हमें मज़ीद 5 ता 8 साल दरकार होंगे । अगर ऐसा ही होता रहे तो हम क़तई मुद्दत का ताय्युन किस तरह कर पाएंगे । सुलतान ने रोशनी डाली कि बरोनई इस तरह इस्लामी क़ानूनी के शोबे में पेशरफ़्त के तनाज़ुर मेंअपने आप को देखता है और वो इस्लाम की तालीमात को आगे बढ़ाने केलिए किया हिक्मत-ए-अमली इख़तियार करना चाहता है । उन्हों ने सवाल किया कि क्या हम अब भी ख़ुद को 1950 या 1960के दहिय में पाते हैं , क्या हम फ़रामोश करचुके हैं कि हम को क़ानून की महारत हासिल करने केलिए बैरून-ए-मलिक के वसाइल तवील अर्से तक इन्हिसार करना पड़ा था । अब इस्लामी क़ानून के मुआमले में भी किया हम दूसरों पर इन्हिसार करेंगे । क्या हमारे लिए 15 साल का अर्सा काफ़ी नहीं है कि हम आजिलाना तौर पर इस्लामी क़ानून को बरोनई में लागू करसकें।