शहवत का ज़ोर तोड़ने के लिए रोज़ महशर की पेशी को याद करना ज़रूरी है, उस दिन की ज़िल्लत बड़ी और बुरी होगी। जो शख़्स दो लोगों के सामने अपनी ज़िल्लत बर्दाश्त नहीं कर सकता, वो सारी मख़लूक़ के सामने अपनी ज़िल्लत किस तरह बर्दाश्त करेगा, अल्लाह तआला का इरशाद है कि जिस दिन भेद खोल दिया जाएगा (सूरतुल तारिक़।९)
जब अल्लाह तआला छुपे राज़ों को खोल देगा तो हमारी ज़िल्लत-ओ-रुसवाई में क्या कमी रह जाएगी?। माँ बाप के सामने औलाद रुसवा होगी, शौहर के सामने बीवी, बाप के सामने बेटी और बेटे के सामने माँ रुसवा होगी। लोग क्या कहेंगे कि हमारे सामने क्या बन के रहते थे और ख़ल्वतों में क्या क्या करतूत करते थे।
कयामत के दिन मुजरिमीन अल्लाह तआला के सामने शर्म-ओ-नदामत की वजह से सर भी नहीं उठा सकेंगे। इरशाद बारी तआला है: अगर आप देखें जब कि मुजरिम अपने रब के सामने सर झुकाए हुए होंगे (सूरतुल सजदा।१२) दूसरी जगह इरशाद फ़रमाया आँख झुकाए हुए ज़िल्लत से (सूरतुल शौरा।४५) यानी इंसान परेशान होगा, सर छिपाने की जगह ना मिलेगी।
इरशाद बारी तआला है: कहेगा इंसान उस दिन कहाँ भाग कर जाएंगे। (सूरतुल क़ियामा।५)
हदीस ए पाक में आया है कि जो शख़्स दुनिया में अपने हाथ से शहवत पूरी करता होगा, क़ियामत के दिन वो इस हाल में उठेगा कि इसका हाथ हामिला औरत के पेट की तरह फूला हुआ होगा।
लिहाज़ा इस जुर्म के मुरतकबीन क़यामत के मुनाज़िर के बारे में बार बार सोचें, ताकि ख़शीयत ए इलाही के सबब गुनाहों से निजात हासिल हो। नौजवानों को चाहीए कि हर वक्त में मोअइय्यत ए इलाही के बारे में सोचते रहें।
इरशाद बारी तआला है: वो साथ होता है जहां कहीं भी तुम हो और फ़रमाया हम तुम्हारे शहरग से ज़्यादा क़रीब हैं। यानी हम जो कुछ भी करते हैं, अल्लाह तआला हमें करता हुआ देखता है और जो कुछ बोलते हैं वो सब कुछ सुनता है। इरशाद बारी तआला है: में सुनता हूँ और देखता हूँ।
ग़ौर कीजिए! अगर कोई हमारा क़रीबी हमें तन्हाई में फ़हश हरकत करता देखे तो हमें कितनी नदामत होगी। अगर किसी औरत का भाई या ख़ावंद देख रहा हो तो हम उसकी तरफ़ आँख उठाकर देखते हुए घबराएंगे, जब कि अल्लाह तआला हमें हर काम करता हुआ देखता है, फिर भी हम एहसास नहीं करते।
एक बुज़ुर्ग फ़रमाते थे कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मेरे दिल में इलहाम फ़रमाया है कि मेरे बंदों से कह दो जब तुम गुनाह करते हो तो इन तमाम दरवाज़ों को बंद कर लेते हो, जिससे मख़लूक़ देखती है, मगर इस दरवाज़ा को बंद नहीं करते, जिससे मैं परवरदिगार देखता हूँ। क्या अपनी तरफ़ देखने वालों में सबसे कम दर्जा का तुम मुझे समझते हो।
इरशाद बारी तआला है: क्या नहीं जानता कि अल्लाह तआला देखता है। एक और जगह फ़रमाया: वो आँखों की ख़ियानत को और जो कुछ सीनों में छिपा हुआ है इसे जानता है। इस मज़मून को किसी साहब-ए-दल ने अल्फ़ाज़ का जामा इस तरह पहनाया है:
चोरियां आँखों की और सीनों के राज़ जानता है सब को तो ये बेनयाज़
जहां शहवत उभरने का पूरा सामान हो, ज़िना की तरफ़ माइल करने वाले अस्बाब मौजूद हों, उस जगह को छोड़ देना और माहौल का बदलना इंतिहाई ज़रूरी होता है। हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को जब ज़नान मिस्र ने गुनाह की तरफ़ माइल करना चाहा तो आप ने दुआ मांगी: ऐ मेरे रब! मुझे इससे ज़्यादा क़ैद पसंद है, जिसकी तरफ़ ये मुझे बुलाती हैं। (सूरा यूसुफ़।३३)
इसी तरह बनीइसराईल के सौ आदमीयों के क़ातिल ने जब तौबा की नीयत कर ली तो उसे अपनी बस्ती छोड़ने और नेकों की बस्ती की तरफ़ जाने का हुक्म हुआ। दूसरे अल्फ़ाज़ में माहौल बदलने का हुक्म हुआ, यानी मासियत के माहौल को छोड़ना और नेकी के माहौल को अपनाना लाज़िमी होता है।
अगर किसी जगह ऐसी तस्वीर लगी हो, जिसे देख कर शहवत भड़कती हो तो उस जगह को फ़ौरन छोड़ देना चाहीए। अगर किसी जगह ऐसा इंसान है, जिसको देखने से या बात करने से शहवत भड़कती हो, या उसकी तरफ़ से दावत गुनाह मिलती हो तो उस जगह को छोड़ना ज़रूरी हो जाता है।
अगर किसी कमरे में टी वी चल रही हो और आप इसे बंद करने पर क़ादिर ना हों तो उस जगह से उठ कर चले जाएं।
वाज़िह रहे कि शहवत को हाथ से पूरा करने, किसी औरत के साथ बदकारी करने या बदफ़ेली करने से इंसान के जिस्म में ख़तरनाक अमराज़ पैदा होते हैं, जिनका ईलाज मुआलिजा भी रुसवाई का बाइस बनता है।
बाअज़ औक़ात नौजवान अपनी जवानी में इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि शादी के क़ाबिल नहीं रहते। इससे ना सिर्फ़ उनकी ज़िंदगी तबाह होती है, बल्कि शादी के बाद बीवी की भी ज़िंदगी बर्बाद होती है।
ऐसी सूरत में नौबत तलाक़ तक पहुंच जाती है, यानी दो ख़ानदान एक दूसरे से जुदा हो जाते हैं। नौजवानों को ये बात अच्छी तरह ज़हन नशीन कर लेनी चाहीए कि शहवत के ग़लत इस्तेमाल के सबब रुसवाई का सामना करना पड़ता है।
जब इंसान पर शहवत का भूत सवार होता हो और बदकारी के लिए तबीयत बेक़रार हो तो ज़हन में ये सोचे कि एक तो बदकारी गुनाह कबीरा होने की वजह से अल्लाह तआला की नाराज़गी का सबब है, दूसरा ये कि इंसान के सिर पर ये एक क़र्ज़ होता है। इस क़र्ज़ को घर की कोई औरत ज़रूर चुकाती है, ख़ाह बेटी हो, बीवी हो या बहन हो।
ख़ुशी से उतारे या मजबूरी में उतारे। अगर आज हम किसी की औरत के साथ ज़िना करेंगे तो कल कोई हमारी औरत के साथ ज़िना करेगा। हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० ने इरशाद फ़रमाया कि तुम लोगों की औरतों के साथ परहेज़गारी का बरताव करो, लोग तुम्हारी औरतों के साथ परहेज़गारी का मुआमला करेंगे |