हैदराबाद 5 मार्च (सियासत न्यूज़)- एक वक़्त था जब फ्यूल सरचार्ज आम तौर पर ट्रेन और जहाज़ जैसे हमल-नक़ल (आवा-गमन) के ज़राए पर आइद किए जाते थे, मगर रफ़्ता-रफ़्ता अहल इक़तिदार के लिए ये एक ऐसा हथियार साबित हुआ जिस के ज़रीए वो इंडाइरेक्ट अवाम की जेब पर डाका डाल देती है और अवाम को इस का पता भी नहीं चलता।
जहां तक बर्क़ी सारिफ़ीन पर फ्यूल सरचार्च आइद करने का मुआमला है , ये तो ऐसा है जैसे करे कोई और भरे कोई … चूँकि घरेलू सारिफ़ीन और सनअती इदारों पर जो फ्यूल सरचार्च आइद किया जाता है वो उनके बिल के अलावा होता है जो उन्होंने इस्तेमाल ही नहीं किया है ।
… दरअसल फ्यूल सरचार्ज सिर्फ़ बिल अदा करने वालों पर आइद किए जाते हैं और चूँकि ज़रई शोबे को मुफ़्त बर्क़ी सरबराह की जाती है इस लिए उसे फ्यूल सरचार्ज अदा करने की ज़रूरत ही नहीं ।
वाज़ेह रहे कि आंध्र प्रदेश में बर्क़ी इस्तेमाल करने वाले घरेलू सारिफ़ीन का तनासुब 39% है और सनअती इदारों का तनासुब 30% है ।जब कि ज़राअत का शोबा 31% बर्क़ी इस्तेमाल करता है ।
सरकारी आदादो शुमार के मुताबिक़ साल 2003-04 में ज़राअत के लिए बर्क़ी का इस्तेमाल 12,636 मिलियन यूनिट्स था जो साल 2012-13 में बढ़ कर 19,636 यूनिट्स हो गया।हुकूमत अगर मज़कूरा बाला तरीका से एफ एस ए तय करे तो ये बराए नाम होगा।
यानी ये दस पंद्रह फ़ीसद से ज़्यादा फ़र्क़ नहीं होगा मगर अलमीया ये है कि असल चार्जेस से कई गुना ज़ाइद एफ एस ए आइद किया जा रहा है जो दरअसल हुकूमत ,बर्क़ी इदारे और रेगुलेटरी कमीशन के ग़लत आदादो शुमार का नतीजा होता है ।
बर्क़ी पैदावार की लागत को कम दिखाया जाता है और उस की बुनियाद पर बर्क़ी चार्जेस तय कर दिए जाते हैं। मगर बर्क़ी चार्जेस में इज़ाफ़ा की सिर्फ़ यही एक वजहा नहीं है बल्कि ये कई एक वजूहात में से एक वजह है,
जिस की बुनियाद पर अवाम को एक तरफ़ बर्क़ी के इस्तेमाल पर ज़्यादा से ज़्यादा पैसे ख़र्च करने पड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ़ उन्हें मयारी और बिला रकावट बर्क़ी सरबराही से भी महरूम होना पड़ रहा है। इस लिए बर्क़ी चार्जेस के लिए और कौन-कौन से अवामिल ज़िम्मादार हैं इस पर इंशाअल्लाह आइन्दा रोशनी डाली जाएगी।