बर्तानिया की म्यूज़ीयम में हज नुमाइश, ग़ैर मुस्लिमों को मुशाहिदा का मौक़ा

लंदन 1 फरवरी(यू एन आई) यहां इस माह हज । इस्लाम के क़लब की तरफ़ सफ़र नामी नुमाइश में ग़ैर मुस्लिमों को मुस्लमानों के हज का तजुर्बा करने का मौक़ा फ़राहम करा गया। नुमाइश का आग़ाज़ 26 जनवरी को ब्रिटिश म्यूज़ीयम में हुआ था।जज़बाती ताल्लुक़और मदद के जज़बे की तख़लीक़ केलिए एक दूसरे के तजुर्बात मैं शराकत नागुज़ीर है। अगरचे ये नुमाइश तारीख़ी और सक़ाफ़्ती बुनियादों पर मुनाक़िद की गई और फ़हर्त बख्शतौर पर ग़ैर सयासी भी है लेकिन ये मुस्लमान और ग़ैर मुस्लिम दोनों तरह के हाज़िरीन को ये मौक़ा फ़राहम करती है कि वो एक लम्हे केलिए दूसरों की जगह खड़े हो कर महसूस कर सकें।

और ये वो अमल है जिस का अफ़सोसनाक बिटवा रों की शिकार हमारी दुनिया में हमेशा ख़ैर मुक़द्दम किया जाना चाहीए। नुमाइश में बर्तानिया, सऊदी अरब और दुनिया के दीगर हिस्सों से सरकारी और निजी ज़ख़ीरों से इकट्ठे किए गए तबर्रुकात सजा दिए गए थे। सऊदी अरब से आरियतन ली गई अश्या में सीतना यानी ख़ाना काअबा का कड़ाई किया गया ग़लाफ़ है जो दरमयान से खुलता है जहां से ख़ाना काअबा में दाख़िल हुआ जा सकता है। कड़ाई की गई करानी आयात जो ग़लाफ़ की शान को बढ़ा रही थीं उन के अतराफ़ सुर्ख़ और नीले हाशीए ख़त्ताती की गहिरी माअनवियत को नुमायां कर रहे थे। ये नुमाइश हज के हालिया और तारीख़ी दोनों किस्म के तजुर्बात के बारे में जानने का मौक़ा फ़राहम करती है।

हिजाज़ में रेलवे के मुम्किना रास्तों की निशानदेही करता एक असली नक़्शा लोगों की तवज्जा अपनी जानिब मबज़ूल करवा लेता है जिसे उसमानी ख़िलाफ़त के अहलकार हाजी मुख़तार बे ने अपने सफ़र हज के दौरान तर्तीब दिया था। हाल के दूसरी जानिब लोगों के एक ग्रुप की शोख़ रंगों में बनी ख़ाकों से मुशाबेह एक तस्वीर में एक हाजी रेतले मैदान के किनारे पर खड़ा है जिस के अतराफ़ गहिरा नीला रंग है। ये जुनूबी मिस्र से लाई गई एक तस्वीर थी जहां कई सदीयों तक छोटे देहात के बासी हाजियों की रवानगी को ज़ाहिर करने केलिए इस तरह की तसावीर बनाते रहे । मुस्लमानों की बात जहां अक्सर शरीयत के हवाले से होता है वहीं ये नुमाइश उन चंद मवाक़े में से है जिस का ताल्लुक़ महिज़ इस बात से है कि मुस्लमान होना कैसा होता है और किसी दूसरे की हैसियत में अपने आप को महसूस करना और उन के नुक़्ता-ए-नज़र से दुनिया का तजुर्बा करना कैसा महसूस होता है।

वज़ीटरज़ को यहां ये तजुर्बा हासिल हुआ होगा। नुमाइश में मौजूद तारीख़ी नवादिरात में इस वक़्त के शीराज़ और आज के ईरान से पंद्रहवीं सदी की एक तस्वीर शामिल रही जो मक्का में हर्म पाक के अंदर लोगों के एक ज़म्म-ए-ग़फ़ीर को ज़ाहिर करती है। फ़नकार ने इंसानों के एक समुंद्र की अक्कासी की है जिन की जल्द की रंगत में काले, गोरे और उन के दरमयान मौजूद सारे रंग मौजूद हैं। हाल की दूसरी जानिब 2009 की कैमरे से ली गई एक तस्वीर हम असर हाजियों को अर्फ़ात के सहरा में दिखाया गया है जहां वो आफ़ियत और माफ़ी के लिए जाते हैं। यहां भी चेहरे इंसानियत की एक ऐसी तस्वीर नज़र आते हैं जो आफ़ियत की वाहिद ख़ाहिश में इकट्ठे हैं और तमाम ख़ारिजी इख़तिलाफ़ात को मिटाते हुए एक जैसे सादा सफ़ैद लिबास में मुत्तहिद हैं।

हर ज़ाइर यहां मुख़्तलिफ़ ममालिक और सक़ाफ़्तों से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों से मिलता है और इस के नतीजे में मुश्तर्कइंसानियत का ऐसा इदराक हासिल करता है जो उसे बदल देता है।हज के मौज़ू पर ब्रिटिश म्यूज़ीयम की इस नुमाइश के ज़रीये कोशिश की गई है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस ज़बरदस्त तजुर्बे में शरीक किया जाय।