लंदन 23 जुलाई:बर्तानिया की बिर्मिंघम यूनीवर्सिटी की लाइब्रेरी से क़ुरआन मजीद का क़दीम तरीन नुस्ख़ा बरामद हुआ है। यूनीवर्सिटी के मुताबिक़ रेडीयो कार्बन टेस्ट से ये मालूम हुआ हैके ये नुस्ख़ा कम अज़ कम 1370 साल पुराना है और अगर ये दावा दरुस्त है तो ये क़दीम तरीन क़ुरआन नुस्ख़ा हज़रत मुहम्मद (स०) के दौर के बिलकुल क़रीब का है।
क़ुरआन का ये नुस्ख़ा यूनीवर्सिटी की लाइब्रेरी में तक़रीबन एक सदी से मौजूद था।ब्रिटिश लाइब्रेरी में एसे नुस्ख़ों के माहिर डॉ मुहम्मद ईसा का कहना हैके ये बहुत दिलचस्प दरयाफ़त है और मुस्लमान बहुत ख़ुश होंगे।ये नुस्ख़ा मशरिक़ वुसता की किताबों और दुसरे दस्ताविज़ात के साथ पाया गया और किसी ने उसकी पहचान नहीं की।
इस नुस्खे़ को एक पी एचडी करने वाले तालिब-ए-इल्म ने देखा और फिर फ़ैसला किया गया कि इस का रेडीयो कार्बन टेस्ट किराया जाये और इस टेस्ट के नतीजे ने सब को हैरान कर दिया। डॉ अलबाफ़ीडी ने कहा कि उन्होंने अपनी पी एचडी की तालीम के दौरान रिसर्च किया था जिस में एसे ही नुस्ख़ा की दो जिल्दें देखी थीं।
यूनीवर्सिटी की डायरेक्टर सूज़न वोरल का कहना हैके तहक़ीक़ दानों को अंदाज़ा भी ना था कि ये नुस्ख़ा इतना क़दीम होगा। उन्होंने कहा कि ये मालूम होना कि हमारे पास क़ुरआन का दुनिया में क़दीम तरीन नुस्ख़ा मौजूद है बहुत ख़ास है।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी के रेडीयो कार्बन एक्सेलरेटर यूनिट में किए गए टेस्ट से ये बात सामने आई हैके ये नुस्ख़ा भीड़या बक्री की खाल पर लिखा गया है। ये क़दीम तरीन नुस्ख़ों में से एक है।
इस टेस्ट के मुताबिक़ ये सन 568 और सन 645 के दरमयान का नुस्ख़ा है।बर्मिंघम यूनीवर्सिटी के ईसाईयत और इस्लाम के प्रोफेसर डेविड थॉमस का कहना हैके इस तारीख़ से ये कहा जा सकता हैके इस्लाम की आमद के चंद साल बाद का नुस्ख़ा है। प्रोफेसर थॉमस का कहना हैके इस बात के भी क़वी इमकानात हैंके जिस ने भी ये नुस्ख़ा तहरीर क्या वो आप (स०) के दौर में मौजूद थे और एन मकन हैके वो दरबार नबवी(स०) में ज़्यादा क़रीब रहे हूँ।
प्रोफेसर थॉमस का कहना हैके क़ुरआन को किताब की सूरत में 650 में मुकम्मिल किया गया।इन का कहना हैके ये काफ़ी एतेमाद से कहा जा सकता हैके क़ुरआन का जो हिस्सा इस चमड़े पर लिखा गया हैके वो पैग़ंबर इसला(स०) के पर्दा फ़रमाने के दो दहाईयों के बाद का है।
जो नुस्ख़ा मिला है वो मौजूदा क़ुरआन के क़रीबतर है जिस से इस बात को तक़वियत मिलती हैके क़ुरआन में कोई तबदीली नहीं की गई और वो वैसा ही जैसे कि नाज़िल हुआ।
इस क़ुरआन का रस्म उलख़तहिजाज़ी है जिस तरह अरबी पहले लिखी जाती थी।ब्रिटिश लाइब्रेरी के मुहम्मद ईसा का कहना हैके ख़ूबसूरत और वाज़िह हिजाज़ी रस्म उलख़त में तहरीर नुस्खे़ यक़ीनी तौर पर पहले तीन ख़ुलफ़ाए राशिदीन के ज़माने के हैं यानी 632 और 656 के अर्से के।
मुहम्मद ईसा का कहना हैके तीसरे ख़लीफ़ा हज़रत उसमान ग़नी रज़ी अल्लाहु तआला अनहु के ज़माने में क़ुरआन का हतमी नुस्ख़ा मंज़रे आम पर लाया गया।बहरहाल इस नुस्खे़ का मिलना और इस पर ख़ूबसूरत हिजाज़ी रस्म उलख़त से मुस्लमान बहुत ख़ुश होंगे।ये नुस्ख़ा 3000 से ज़्यादा मशरिक़ वुसता के दस्ताविज़ात के मंगाना मजमुए का हिस्सा है जो 1920 की दहाई में जदीद इराक़ के शहर मूसिल से पादरी अलफ़ोनसे मंगाना लाए थे।
बर्मिंघम की मुक़ामी मुस्लमान आबादी ने इस नुस्खे़ की दरयाफ़त पर ख़ुशी का इज़हार किया है। यूनीवर्सिटी का कहना हैके इस नुस्खे़ की नुमाइश की जाएगी।