हुकूमत आंधरा प्रदेश ने रियासत में बर्क़ी शरहों में इज़ाफ़ा कर दिया है । पहले प्रॉपर्टी टैक्स में इज़ाफ़ा किया गया फिर आर टी सी किराये में इज़ाफ़ा और अब बर्क़ी शरहें बढ़ा दी गयी। रियासती हुकूमत का इद्दिआ है कि हुकूमत ने काफ़ी ग़ौर-ओ-ख़ौज़ के बाद ये फैसला किया है और ये नागुज़ीर सूरत-ए-हाल थी जिसके बाद ही इज़ाफ़ा की इजाज़त दी गई ।
आंधरा प्रदेश इलेक्ट्रीसिटी रेगूलेटरी अथॉरीटी की जानिब से मालना नई बर्क़ी शरहों का यक्म अप्रैल से इतलाक़ होगा और इस इज़ाफ़ा के नतीजा में अवाम की जेब से मज़ीद 4442 करोड़ रुपय हुकूमत के खज़ाने में चले जाएंगे । हुकूमत की जानिब से जो तफ़सीलात पेश की गई हैं वो एक तरह से ज़ोर का झटका । धीरे से देने की कोशिश है । इबतिदाई पचास यूनिट तक बर्क़ी सिर्फ़ करने वाले सारफ़ीन के लिए शरहों में कोई इज़ाफ़ा नहीं होगा ।
पचास से 100 यूनिट बर्क़ी जलाने वालों के लिए फ़ी यूनिट 20 पैसे की कमी का इद्दिआ किया जा रहा है जबकि इससे इज़ाफ़ी बिजली जलाने वालों के लिए फ़ी यूनिट 20 से 83 पैसे का इज़ाफ़ी मुख़्तलिफ़ ज़मरों में किया गया है । इसी तरह कमर्शियल ज़मुरा में भी इबतिदाई पचास यूनिट जलाने वालों के लिए शरहों में कोई इज़ाफ़ा ना करने का ऐलान किया गया है जबकि पचास से 100 यूनिट पर यहां भी 20 पैसे फ़ी यूनिट की कमी का इद्दिआ किया जा रहा है ।
101 यूनिट या इससे ज़्यादा बिजली जलाने वालों के लिए जो बिल आएंगे वो अवाम को शॉक लगाने के लिए काफ़ी होंगे । इस इज़ाफ़ा का जवाज़ पेश करते हुए हुकूमत का कहना है कि पड़ोसी रियासतों में बर्क़ी शरहें आंधरा प्रदेश से काफ़ी ज़्यादा हैं। इसके इलावा बर्क़ी सरबराह करने वाली कंपनियों को सालाना हज़ारों करोड़ रुपय का नुक़्सान बर्दाश्त करना पड़ रहा था जिसके बाद हुकूमत ने मजबूरी की हालत में तमाम तर एहतेयाती इक़दामात के साथ इस इज़ाफ़ा का ऐलान किया है ताकि आम आदमी और कम बिजली ख़र्च करने वालों को इस इज़ाफ़ा के असरात और माली बोझ से बचाया जा सके ।
हुकूमत का इद्दिआ है कि इन नुक़्सानात का बड़ा हिस्सा अभी भी हुकूमत सब्सिडी के तौर पर बर्दाश्त कर रही है और 4442 करोड़ रुपय का बोझ अब बर्क़ी सारफ़ीन पर मुंतक़िल किया जा रहा है की क्योंकि हुकूमत के लिए इतना ज़्यादा माली बोझ बर्दाश्त करना मुम्किन नहीं रहा है ।
हुकूमत भले ही ये दावे कर ले कि इसने आम आदमी को माली बोझ से महफ़ूज़ रखने के तमाम तर एहतेयाती इक़्दामात करते हुए ये इज़ाफ़ा किया है लेकिन इसका असर रास्त यह बिलवास्ता तौर पर आम आदमी पर ही आइद होगा और हुकूमत इस का कोई जवाज़ पेश करने के मौक़िफ़ में नहीं है ।
जहां तक पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को नुक़्सानात का सवाल है इसको कम करने के दीगर कई तरीके इख्तेयार किए जा सकते थे और आम आदमी को जो पहले ही बेतरह मसाएल का शिकार है और मुसलसल महंगाई की मार सहने पर मजबूर कर दिया गया है इस बोझ से हक़ीक़ता महफ़ूज़ रखा जा सकता था । सब से पहले तो जो कसीर और भारी रक़ूमात बड़ी कंपनियां और इदारे और सियासतदानों के इलावा सरकारी दफ़ातिर वाजिब अलादा हैं उन्हें बरवक़्त अदा करते हुए इन कंपनियों के लिए सहूलत फ़राहम की जा सकती थी ।
करोड़ों रुपय ख़ुद हुकूमत के मुख़्तलिफ़ इदारे वाजिब अलादा हैं इन रक़ूमात को वसूल करने की बजाय ट्रांस्को का अमला चंद सोया बमुश्किल चंद हज़ार रुपय बिल्स बाक़ी रहने वाले सारफ़ीन के बर्क़ी कनेक्शन मुनक़ते कर देते हैं लेकिन बड़ी कंपनियों और इदारों के साथ ऐसा सुलूक नहीं किया जाता ।
इस मुआमला में भी आम आदमी ही निशाना बनता है । इसी तरह मुख़्तलिफ़ मुआमलात में करप्शन को ख़तम करते हुए भी नुक़्सानात को कम किया जा सकता है । बड़े इदारों और कंपनियों की जानिब से बर्क़ी की चोरी एक संगीन मसला है और इसको हल करने में अगर संजीदगी इख्तेयार की जाए तो नुक़्सानात को बड़ी हद तक क़ाबू में रखा जा सकता था।
इन वाक़्यात में मुताल्लिक़ा अमला के एक मख़सूस गोशा की साज़ बाज़ से कोई इंकार नहीं कर सकता । सरकारी ओहदा का इस्तेमाल करते हुए इस तरह के नुक़्सानात का सबब बनने वाले अमला के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके भी आम आदमी को माली बोझ से बचाया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया और नुक़्सानात का उज़्र पेश करते हुए आम आदमी ही को रास्त यह बिलवास्ता तौर पर अपनी जेब हल्की करने पर मजबूर कर दिया गया है ।
इसके बावजूद हुकूमत ये इद्दिआ करने से नहीं चूकती कि आम आदमी को इसके बोझ से बचाने की हर मुम्किन कोशिश की गई है ।
कमर्शियल ज़मुरा में जो फ़ी यूनिट भारी इज़ाफ़ा किया गया है इसके भी बिलवास्ता असरात आम आदमी ही पर मुरत्तिब होंगे । सनअतें और दीगर कारोबारी इदारे ख़ुद पर आइद होने वाले बर्क़ी शरहों के इज़ाफ़ी बोझ को अपनी जेब से बर्दाश्त करने की बजाय इसका बोझ बिलवास्ता तौर पर अवाम पर ही मुंतक़िल करेंगे । इस तरह घरेलू इस्तेमाल के साथ साथ तिजारती यह कमर्शियल ज़मुरा के इज़ाफ़ा का बोझ भी बादल नख़्वास्ता अवाम ही को बर्दाश्त करना पड़ेगा ।
अवाम पहले ही आर टी सी किराये में इज़ाफ़ा प्रॉपर्टी टैक्स में इज़ाफ़ा और मर्कज़ी सतह पर पेट्रोल की कीमतों में इज़ाफ़ा के अनुदेशों की वजह से मसाइल का शिकार हैं और अब जबकि मौसिम-ए-गर्मा शिद्दत इख्तेयार करता जा रहा है और ऐसे वक़्त में बिजली का इस्तेमाल और तलब भी बढ़ जाती है बर्क़ी शरहों में इज़ाफ़ा करते हुए अवाम को एक नाक़ाबिल बर्दाश्त बोझ तले दबाने का फैसला किया गया है ।
ये फैसला अवाम के लिए मसाइल का मूजिब बनेगा और हुकूमत का ये दावे क़तई काबिल ए कुबूल नहीं हो सकता कि इस ने आम आदमी को महफ़ूज़ रखने की कोशिश की है । घरेलू ज़मुरा हो या कमर्शियल ज़मुरा हो सारा बोझ अवाम ही पर आइद होगा ।