प्रदेश कांग्रेस अक़लियती डिपार्टमेंट की जानिब से साबिक़ रियासती वज़ीर जनाब बशीरुद्दीन बाबू ख़ां की अवामी, समाजी और मिल्ली ख़िदमात को भरपूर ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया गया।
गांधी भवन में जनाब बशीरुद्दीन बाबू ख़ां का ताज़ियती जलसा मुनाक़िद हुआ, जिसकी सदारत सदर प्रदेश कांग्रेस अक़लियती डिपार्टमेंट मुहम्मद सिराजुद्दीन ने की, जब कि मेहमानों में साबिक़ रियासती वुज़रा आसिफ़ पाशा, मुहम्मद अली शब्बीर, तर्जुमान प्रदेश कांग्रेस कमलाकर राव, सेक्रेटरी प्रदेश कांग्रेस सय्यद यूसुफ़ हाश्मी, डाक्टर एम ए अंसारी के इलावा मीर हादी अली, ख़्वाजा ज़ाकिरुद्दीन, मुहम्मद मूसा क़ासिम, अबदुल्लतीफ़, ज़फ़र, इस्माईलुर रब अंसारी, मुहम्मद जावेद और दीगर भी मौजूद थे।
मुहम्मद अली शब्बीर ने बशीरुद्दीन बाबू ख़ां को मुसबित सोच और मिल्लत का दर्द रखने वाली शख़्सियत क़रार देते हुए कहा कि मरहूम ने मुस्लमानों की तालीमी पसमांदगी और ग़ुर्बत दूर करने के लिए ठोस इक़दामात किए, जो नाक़ाबिल फ़रामोश हैं। उन्होंने अक़लियती कमिशनरेयट क़ायम करने की कोशिश की थी और पहली मर्तबा मसाजिद, आशूर ख़ानों और क़ब्रिस्तानों के लिए हुकूमत से 20 लाख रुपये मंज़ूर किराए थे। इस बात का बड़ा अफ़सोस है कि एक माह में दो अहम मुस्लिम क़ाइदीन लाल जान पाशा और बशीरुद्दीन बाबू ख़ां हम से जुदा हो गए।
कांग्रेसी क़ाइद ख़लीलुररहमन का भी इंतिक़ाल हो गया, ताहम वो पार्टी के ख़िराज-ए-अक़ीदत से महरूम रहे, जिस के ज़िम्मेदार अक़लियती क़ाइदीन हैं, जो पार्टी क़ियादत के पास अपनी डयूटी अंजाम देने में नाकाम रहे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के मुस्लिम क़ाइदीन को आपसी इख़तिलाफ़ात फ़रामोश करते हुए एक प्लेटफार्म पर जमा होकर और प्रेशर ग्रुप बन कर हुकूमत-ओ-पार्टी पर असरअंदाज़ होना चाहीए।
जनाब आसिफ़ पाशा ने कहा कि बशीरुद्दीन बाबू ख़ां क़ौम-ओ-मिल्लत का दर्द रखने वाले क़ाइद थे, जिन्होंने उसूलों पर क़ायम रहते हुए विज़ारत को ठुकरा दिया और वीज़न रखने वाली शख़्सियतों में इनका शुमार होता है।
जनाब मुहम्मद सिराज उद्दीन ने बशीरुद्दीन बाबू ख़ां को निडर, बेबाक और दयानतदार क़ाइद क़रार देते हुए कहा कि लोग ओहदों के लिए ना जाने क्या किया करते हैं, ताहम मरहूम ने सेकूलरिज़्म पर क़ायम रहने का अमली सबूत देते हुए विज़ारत से इस्तीफ़ा दे दिया और तेलुगु देशम बी जे पी इत्तिहाद के ख़िलाफ़ बग़ावत करते लुए पार्ट छो़ड दी। क़ौम-ओ-मिल्लत ने उन्हें वो एहतिराम नहीं दिया, जिस के वो मुस्तहिक़ थे।