कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए & दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कौए यार में। ये बहादुर शाह ज़फ़र का वो शेर है जिसे वज़ीर उमूर ख़ारिजा सलमान ख़ुरशीद ने आख़िरी मुग़ल शहनशाह के तारीख़ी मक़बरे को अपने दौरे के दौरान पढ़ा। ज़फ़र जो मुमताज़ शायर भी थे, बॉमर 87 साल यहां 7 नवंबर 1862 को इंतिक़ाल करगए जबकि बर्तानवी राज ने 1857 की बग़ावत पर उन्हें मुल्क बदर करते हुए रंगून (मौजूदा यंगून) को जिलावतन कर दिया था।
ख़ुरशीद जिन्होंने इस अज़ीम शायर के साथ अपनी चाहत को शख़्सी बताया, यहां 19 वीं सदी के मक़बरे की दीवारों पर नक़्श ज़फ़र की तमाम नज़मों को पढ़ते हुए अपने जज़बात की अमली अक्कासी की। वज़ीर मौसूफ़ ने एक ड्रामा बाबर के सपूत तहरीर किया है जो इन्फ़िरादी मग़्लूं के रोल का जायज़ा लेता है और इसमें बहादुर शाह ज़फ़र को मर्कज़ी किरदार के तौर पर पेश किया गया है।
ख़ुरशीद ने बाबर के सपूत का एक नुस्ख़ा इस मक़बरे के निगरानकार को दिया। रुहानी और सयासी दोनों एतबार से अहम इस मुक़ाम की ज़यारत करते हुए मुझे सुकून-ओ-इतमीनान और तहरीक का एहसास हो रहा है&, ख़ुरशीद ने ज़ाइरीन की किताब अलराए में ये बात लिखी, जिसमें वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और आँजहानी राजीव गांधी के शख़्सी पियामात भी तहरीर हैं। ख़ुरशीद और उन की अहलिया लूसी ने मक़बरे में दुआ की और चादर भी पेश की।