बाबरी मस्जिद- अयोध्या: ‘अदालत यह नहीं बता सकती, कहां नमाज़ पढ़े और कहां नहीं’

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर इस्माइल फारूकी केस में दी गई व्यवस्था के खिलाफ शुक्रवार को सुनवाई शुरू कर दी। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि अदालत यह नहीं बता सकती कि कहां नमाज पढ़ें, कहां नहीं।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, अशोक भूषण और एसए नजीर की विशेष पीठ के समक्ष उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मस्जिद या पूजा स्थान मुस्लिम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है, मुस्लिम नमाज कहीं भी पढ़ सकता है। मस्जिद जरूरी नहीं है। यह गलत है। कोर्ट किसी धर्म को लेक्चर नहीं दे सकती।

उन्होंने कहा कि कुरान व हदीस के अनुसार मस्जिदें अल्लाह का घर हैं। उसकी संपत्ति हैं। उसे अधिग्रहीत नहीं किया जा सकता। इसे ढहाने पर भी महत्व समाप्त नहीं होता। उन्होंने कहा कि फैसला ढांचे को ढहाने के बाद आया, जिससे केस एकपक्षीय हो गया।

इसी आधार पर हाईकोर्ट ने दो हिस्स हिंदू पक्ष को देने का फैसला किया। मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि इस व्यवस्था ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक व्यवहार और पूजा करने की आजादी) के दायरे को सीमित कर दिया है। अनुच्छेद 25 हर धर्म को उसके पूजा स्थान रखने का अधिकार देता है। लेकिन फैसले में इसे नकार दिया गया।

हिंदू पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष फैसले की समीक्षा पर की जाने वाली बहस कर रहा है, जो विचारणीय नहीं है। यह अधिग्रहण के खिलाफ भी है। अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बहस फैसले के कुछ पैराग्राफों पर की जा रही है। इसे तभी बड़ी पीठ को भेजा जाएगा जब यह सहमति होगी कि फारूकी केस में दी गई व्यवस्था संवैधानिक उसूलों पर सही नहीं थी।

साभार- हिन्दुस्तान