बाबरी मस्जिद की सुनवाई आज आडवाणी, उमा और कल्याण हैं मुल्ज़िम

नई दिल्ली: अयोध्या में मुतनाज़ा बाबरी मस्जिद ढांचा मुंहदिम मामले की सुनवाई आज ( मंगल) सुप्रीम कोर्ट में होगी। सीनीयर भाजपा लीडर लालकृष्ण आडवाणी और दिगर मुल्ज़िमों को मुजरिमाना साजिश से आज़ाद करने के फैसले के खिलाफ अपील पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई शुरू करेगा। इस अपील में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी को बाबरी मस्जिद शहीद करने के इल्ज़ाम से बरी कर दिया गया था। यह दरखास्त फैजाबाद के रहने वाले हाजी महमूद अहमद की तरफ से दायर की गई है, जो रामजन्म भूमि तनाज़ा केस से पिछले 45 साल से जुडे हैं।

उन्होंने कहा कि, राजनाथ सिंह भी इस मामले में मुल्ज़िम है, लेकिन अब वह वज़ीर ए दाखिला हैं और सीबीआई पर भी उनका कंट्रोल है। दूसरे मुल्ज़िम कल्याण सिंह भी राजस्थान के गवर्नर हैं और उमा भारती कैबिनेट मिनिस्टर हैं। अहमद भी उन लोगों में से हैं, जिनका घर तशद्दुद के दौरान जला दिया गया था और ढहाया गया था।

उन्होंने अदालत से अपील की है कि एक मुतास्सिरा पार्टी के तौर पर उन्हें इस मामले में बहस करने की इजाजत दी जाए। उन्होंने सीबीआई जांच पर भी शक जताया है। इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस एचएल दत्तू के सामने होगी। इस मामले के मुल्ज़िमों में कल्याण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतंभार, विनय कटियार और अशोक सिंघल शामिल हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद शहीद करने के मामले में 21 मुल्ज़िमों को बरी कर दिया था।

इस केस में दो दिन पहले सीबीआई की ओर से इस मामले की फौरन सुनवाई करने की गुजारिश की गयी थी। सीबीआई का कहना था कि इस मामले में मुल्ज़िम लालकृष्ण आडवाणी 87 साल के हो गए हैं और मामले को जल्द निपटाना ही इंसाफ के मुफाद में होगा।

चीफ जस्टिस एचएल दत्तू इस गुजारिश को कुबूल कर मामले की जल्द सुनवाई के लिए तैयार हो गए। हालांकि सीबीआई को ही इस मामले में कोर्ट में जवाब देना है कि उसने हाईकोर्ट के बरी करने के हुक्म के खिलाफ अपील करने में 167 दिन देर क्यों की।

सीबीआई ने यूपी हाईकोर्ट के 21 मई 2010 के फैसले को आली अदालत में फरवरी 2013 में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने भाजपा लीडरों के खिलाफ 1992 में मुतनाज़ा ढांचा को मुंहदिम करने की साजिश के इल्ज़ाम को हटाने के खुसूसी अदालत के फैसले को सही ठहराया था।
लेकिन उसने दिगर इल्ज़ामात में आडवाणी और दूसरे मुल्ज़िमों के खिलाफ मुकदमा चलाने की इज़ाज़त दे दी थी।

खुसूसी अदालत ने 4 मई 2001 को इन लीडरों के खिलाफ मुजरिमाना साजिश के इल्ज़ाम को हटाने का फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने 21 मई 2010 के फैसले में कहा था कि खुसूसी अदालत के इस फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील में कोई दम नहीं है।

इस फैसले में लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार और मुरली मनोहर जोशी पर लगे साजिश के इल्ज़ाम हटा दिए गए थे। इनके अलावा सतीश प्रधान, सीआर बंस, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, विष्णुहरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, आरवी वेदांती, परमहंस रामचंद्र दास, जगदीश मुनि महाराज, बीएल शर्मा, नृत्यगोपाल दास, धरम दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावे पर लगे साजिश के इल्ज़ाम भी हटा दिए गए थे।